Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 62
________________ विवेचन : हर एक नरक पृथ्वी की जाड़ाड़ का मध्यभाग के नीचे धनोदधि की जाड़ाइ २० हजार योजन की है। उसके नीचे धनवात असंख्यात योजन, उसकी नीचे तनवात असंख्यात योजन और उसकी नीचे आकाश असंख्यात योजन मध्य भाग में हैं, उसके बाद धनोदधि आदि तीन वलय कम होकर कितना योजन विस्तार है वह इस प्रकार है नरक पृथ्वी नरक के नाम पृथ्वी पिंड धनोदधि धर्मा वंशा शैला अंजना रिष्टा रत्नप्रभा शर्कराप्रभा बालुका प्रभा पंक प्रभा धूम प्रभा तमः प्रभा तमस्तमः रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुका प्रभा पंक प्रभा धूम प्रभा तमः प्रभा मधा माघवती तमस्तमः ९६) नरक पृथ्वी की धनोदधि आदि तीनो वलयो का विस्तार नरक पृथ्वी धनोदधि धनवात तनवात नरकपृथ्वी नरकावास प्रसार यो गाउ योजन योजन गाउ पृथ्वी धनोदधि योजन / गाउ ६ 9,40,000, 20,000 १,३२,०००, 9,22,000 9,20,000 १,१८,००० १,१६,००० 9,02,000 सीमंतक से लेकर अप्रतिष्ठान तक (४९) इन्द्रक नरकावास है। ६.२५१/३ ६.५२/३ ما धनवात योजन ४.५ ४.७५ ५ ५.५ ७.२५१/३ ५.५ ७.५२/३ ५.७५ ६ तनवात योजन / गाउ धनवात १.५ १.५१/३ १.२५१/३ १.७५ १.७५१/३ १.७५२/३ २ नरक पृथ्वी योजन / गाउ १२ १२.५२/३ १३.२५१/३ तनवात १४ १४.५२/३ १५.२५१/३ नरकवासा ३० लाख २५ लाख १५ लाख १० लाख ३ लाख ९९,९९५ आकाश ५ प्रतर १३ ११ ९ ما ८ १६ ९७) सातों पृथ्वी के आवलिकागत नरकवासा और पुष्पावर्कीण नरकावासा सातों पृथ्वी मिलाकर आवलिका गत नरकावासा छनुंसोत्रेपन है और बाकी (पुष्पावकीर्ण) नरकावासा त्र्यांसी लाख नब्बे हजार तीनस सुडतालीस (८३,९०, ३४७) है । ५ ३ १ विवेचन : सर्व इन्द्रक नरकावास गोल है। उसके बाद चार दिशा और विदिश में रहे आवलिकागत नरकावास अनुक्रम से त्रिखुणा (त्रिकोण), चोखुणा (चोरस) और वाटला है। एसा आवलिका के अंत तक है। पुष्पावकीर्ण नरकावास अलग अलग आकार से है। वे सब नरकावास अंदर से गोल, बाहर से चोरस और नीचे से उस्तरे की धार की तरह है। जिसके उपर पाँव से चलने से अति वेदना होती है। नारकी के जीव पराधीन है, और वहाँ दुःख ही सहने का है । वहाँ कुछ भी शुभ नहीं है जिससे लूटने का मन हो। इसलिये इंद्रादि की व्यवस्था नहीं है। विमान के मालिक की तरह यहाँ हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (62)

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