Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ प्रमादवशथी अवा जाणी जोइने कर्म बांधीओछीअॅ "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार” | आवा दुःख माराथी सहन नहीं थाय शुं कहुँ खरेखर केवी रीते समभाव रहेशे तेनाथी हुँ ड्रुं हुं । जिनआज्ञा विरुद्ध लवायुं होय तो मिच्छामि दुक्कडम् । जवेरबेन भगवानजी मेंकणा (अंधेरी) आ पुस्तक वांच्या पछी कोइ पण पाप-कर्म करीअ त्यारे नारकीना चित्रो नजर सामे आववा मांडे छ। अने हृदयमांगभराट उत्पन्न थाय छे। अने पाप-कर्म करवां जतां अटकी जइओछीओ अने कदाच संसारमा रहीने पाप-कर्म करयां पडे तो हृदयमां उल्लासे करता नथी पण हवे उदासीनपणे करवा पडे ते खातर करवानां अवं थइ जाय छे । अ अढार पापस्थानक पण दिवस दरम्यान सेवाइ गया होय तो राउने प्रतिक्रमणमां याद करीने पश्चाताप लेवानुं मन थाय छे । पहेला तो प्रतिक्रमणमा कंटाळो आवतो हतो, पण हवे नरक सामे देखाय अटले मोज-मझा छोडीने भगवाने बतावेल आवश्यक करवानुं मन थाय छे। अक क्षणनी मझामां अनंतो काळ दुःख सहेवू नथी माटे “हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार"। लि. चेतनाबेन सुरेशभाई पटवा (दादर) १) चारे गतिमाथी भयंकर गति नारकी छे। २) नरकनुं दुःख जोया पछी खोटुं काम नहीं करवातुं मन थाय छ। ३) नारकीनी चित्रावली जोइने माणस खोटुं काम नहीं करवानुं अने सज्जन बनवानुं शीखे छ। ४) नारकीनी चित्रावली जोइने जीवन सदाचारी बने छ। ५) नरकनी अंदर आर्यु भयंकर दुःख जोइने जीव धर्म मार्गे वळवानो निश्वय करे छ। ६) जीवनमां संस्कार सारा पडे छे। ७) जीवनमा पाप करतां अटके छे । ८) जीवन सन्मार्गे चढे छ। ९) नारकीनुं पुस्तक जोइने लालचोळ पुढं जोइने अंदर अग्निमय जीवन छ। १०) जे दुःख कोइ जग्याजोवा मळतुंनथी तेयं दुःख नरकमां आ पुस्तकनी अक्झाम माटे तैयारी करवा माटे ज्यारे पुस्तक वांचती हती त्यारे नरकनां द्रश्यो खडा थता हता। दरेक डगले ने पगले दरेक जीवोने खमाववानी इच्छा जागी अने मन कहेतुं हतुं के अनंता भवोथी करतां आवेला पापथी आ जीव क्यारे मुक्त थशे? शाकभाजी सुधारता, भरत गुंथण करतां, दरेक कार्य करता बस नकरर्नु दुःख याद आवतुं हतुं । हवे डगले अने पगले बस नवकार गणवो अने खामेमि सव्व जीवा, सव्वे जीवा खमन्तु मे। मित्ति में सव्व भूसु वैरं मज्झा केणई॥ जेवू थइ गयुं छे । हे प्रभु ! अनंत भवथी, अनंता जीयो अने अनंता पापोनी हुँ डगले अने पगले त्रणेय काळ (भूत-वर्तमान अने भविष्य) ना त्रिविधे-त्रिविधे मिच्छामि टुक्कडम् । ११) नरकनुं दुःख जोड्ने आवू असा दुःख ज्यां कोइनु कोड़ नथी। ज्यां असह्य दुःख छ । ज्यां आढुं गगन चिचियारी राडाराडथी भरेल छे। सुखनुं नामोनिशान नथी । भावना पंकजकुमार चोक्सी आ पुस्तक वांचीने खरेखर नारकीनु जे वर्णन वांच्युं स्वरेखर ध्रुजारी छूटी जाय छे । केवी कर्मसत्ता के कोईने छोडती नथी हसता हसतां कर्म बांधेला रडतां पण नहीं छूटे, केवी हालत छे के जे नरकना जीवोनी त्राहिमाम पोकारे छे, पण त्यां कोई ज छोडावनाएं पण नथी । त्यांनुं वातावरण पण केयु भयानक छ के जोतां आपणे डरी जइओ । अमे हमणा नारकीर्नु अमारा उपाश्रयमा आबेहूब वर्णन बताटयुं आ पुस्तक द्वारा अमे कर्यु हतुं । केवी चीसाचीस ! बुमाबुम ! नाना बाळको डरी जाय । वांचीने खूबज लाग्युं त्यां पाणी पण नहीं पीवा मळे आवा जालीम दुःख छे। शं थशे मारी हालत ? अहीं मौज मजामां केवा कर्म बांधी लइ छीओ हसता हसतां, पछी राडो पाडता पण त्यां नहीं छुटे शंकरशं? कर्मनी गति न्यारी छे कर्मसत्ता पासे कांइज चालवान नथी पण मनने समजाववानुं छे । कषायथी दूर रहेवार्नु छ । आ पुस्तक वाचवाथी आनंद अने दुःख बनेनी अनुभूति थइ | आ पहेला घणां पाप थयां हता। तेनं प्रायश्वित करवानी तक मळी । तप, जप, धर्मथी घणां पाप ओछां थाय छे, तेवी समज आवी। आ पुस्तक वांचीने हृदय द्रवी गयुं, तेवी लागणी थइ । हवे पाप न थाय अनुं ध्यान राखवानी समज आवी | जो पाप चालु राखवामां आवशे तो नरकमां वर्णवी न शकाय तेटलुंदःख भोगववं पडशे । माटे आ क्षणथी ज चेती जाओ । जेथी नरकनां दुःख भोगववा न पडे। ज्योत्सना (प्रार्थना समाज) आ पुस्तकनुं वांचन करवाथी खरेखर नरक छे तेवो द्रढ विश्वास बेठो छे । अने अक अक काम करीअ त्यारे पापनां फळनां जे विचारो आटया करे छे । डगले ने पगले पाप करता (69) है प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81