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करतां नरकमां] केवी रीते भोगवा पडशे ते दुःख धाच छे तेम ज पाप औछां धया से अने हजु पण वशे कैम के अक महिनाथी पुस्तक वांचीओ तो आंखे आंसु आवी जाय छे। अने पाप करयुं ज पडे छे, तो तेनुं दुःख पण बहु ज थाय छे। पापने करतां होइओ त्यारे पापना विचारो आवे छे अने पाप न थाय ते माटे सारी सारी भावनाओ भावीओ छीओ । तेने अटकाववा धर्म ध्यान करीअ छीओ अने पापना अढारस्थानकोने समजीने तेने ओछो करवा अमुक नियमो करीओ छी जे अने उत्तरोत्तर पाप अटके अने पुण्य वधु करशुं ।
ज्योतिबेन बळवंतराय महेता (मलाड)
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आ पुस्तकजी अक्झराम आपवानी हती अॅटले काले राजे वांचती हती। हुं रात्रिभोजन कहुं हुं, पण हवेधी बने त्यां सुधी रात्रिभोजन नहीं ज कटुं ओम नियम लीधो । काले राये घरे महेमान आव्या शुं बनाएं अम बे बार पूछ अने पछी ना पाडी तो मने पण जैम धयुं के मारे पण बनावदुं नथी मारे पण पापमां पडवुं नथी के तेमने पाडवा पण नथी, अने आखो दिवस सतत रटण चाल्या करे छे । “हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" ।
मीना पंकज संघवी (विले पार्ले)
आ पुस्तकनी अक्झाम आप्या पछी तो रात्रिभोजन तदन बंध करयुं जोइओ अने जूठ प्रपंच, मायाथी दूर रहेवुं जोइअ । खराब आदतोथी दूर रहे जोड़ी दररोज आराधना करवी जोइओ अने नवकार मंत्रनो जाप करवो जरुरी छे । आबुक वांच्या पछी अने तेना चित्रोथी कोइ पण पाप करतां पहेला विचार करवो पडे । आवी प्रेरणा आ पुस्तकमां मळी पुस्तक अतिसुंदर छपायुं छे। धन्य है विमलप्रभ म. सा. ने ।
प्रवीणचन्द्र नानालाल खंडोर (साउथ वावर)
आ बुक वांची साथै ज मनमां अम थाय छे के नारकीमां मारे ज्युं ज नथी। जो अहिंया ज आ संसारमां ज आटलां दुःखो सहन नथी थतां तो नारकीना दुःखतो केटला असहा हशे १ नारकीना दःखी बैठयां करतां तो शरीरने तप, त्याग, जप अने ब्रह्मचर्य पाळीने करी शकीओ। आपणो तप तो अटलो भारे पण नवी के आपणे न करी शकी । भगवाने खूब ज ताकात आपली छे । कांइ ओक-बे उपवास के आयंबिल करवाथी मारा शरीरने नुकशान नहीं धाय हुं मरी तो नहीं जाऊँ ने मार्ट थोडी तप करीने नरकनुं दुःख टाळवं ज जोइओ । आज सुधी जेटलां पाप कर्या ते बहु थचां हवे तो मनमां अक डर बैसी गयी है, जो हुं आम
हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
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करीश तो मारे नरकमां जयं पहले आ कांड पण काम करतां विचार आवे छे। खरेखर, नरकमां जवुं जहु ज वेदनीय छे । माटे "हे प्रभुजी मारे नरकमां नधी जादु" ।
आ नरकजी बुक वांचवाधी मने नरकमां जवाना द्वारा विषे माहिती मळी अने अना विषे मारा मनमां जागृति पण आवी अने मने प्रेरणा पण मळी । पहेलां वडीलो पासेथी सांभळ्युं हतुं के पाप करवाथी नरकमां जवाय पण आजे तो प्रत्यक्ष में मारी आंखोथी जोइ लीधुं के फक्त संसारनी भोगलीलाथी आपणी गति केवी थायो ? हवे हुं तो बधाने आ चार नरकना द्वारा छोडवा माटे पण कही रही हुं। साचे ज आटला जीवोनी हिंसा करीने आपणे नरकमां आटली यातना भोगववी अंना करतां तो संचनपथ स्वीकारो सारौ । मने आ बुक वांचीने खूब ज जाणवा मळ्युं छे अने सर्व त्यागनी पण भावना थइ छे ।
रेखाबेन सतीशभाई गाला (लोअर परेल)
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"हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" पुस्तकधी बहु ज्ञान मधुं छे चौरी करवानी नहीं झूठ बोल नहीं, रात्रिभोजन करवानुं नहीं आ ज्ञान मने आव्युं । नरकमां जवाथी केटला दुःख, यातना भोगववा पडे छे, आ मने खबर पडी । कर्मना फल भोगववा पडे छे । अनाथी छूटको नथी । आ मने पुस्तकमांथी शिखवा मळ्युं ।
आ पुस्तक वाचीने बहु सारा अनुभव थथा कारण के में । आपेली परीक्षा कोड शोख नथी। मने अ मौको मदो पुस्तक वांचवानो ने लखवानो मने थोडं थोडं समजमां आवी गयुं छे । पुस्तक बहु सुंदर है। बाळकोने पण चित्र जोई समजमां आवे
छे।
मंजुलाबेन महेता
मने पुस्तक वांचवानो शोख बहु ज हतो पण कंटाळो आवतो हती। तो पण में जेटला पण पुस्तको वांच्या से अनाथी मने ज्ञान अने मनने शितलता मळी है आ पुस्तक वांचवाथी मारा जीवनमा परिवर्तन थयुं है। जैम रात्रिभोजन त्याग, भगवाननुं मुख-मोढुं जोऊँ पहेला, कंदमूळ त्याग, भगवाननी आंगी वगैरे पुस्तकमां जैवी अवी वाती लखेली है के जे वांचीने डरी जाऊँ।
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