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आपके
भिप्राया....
प.पू. परमोपकारी... परमकृपाळु... वात्सल्यमूर्ति... पू. ग. श्री विमलप्रभविजयजी म. साहेब तथा प.पू. विनयविजयजी म. साहेबना पुनित चरणारविंदे... अमदावादथी ली। आपनी कृपेच्छु सा. प्रफुल्लप्रभाश्री आदिनी अगणित वंदना सह,
आप पूज्यौनां पुनित देहे निरामयता वर्तती हशेजी। स्वास्थ्य । आप बंनेना संयमाराध्य हशेजी।
आप पूज्योनी कृपाथी अमो सर्वे शातामां छीओजी। वि. आपे मोकलावेल हे प्रभुजी! नहिं जाऊँ नरक मोझार' अ पुस्तक मळ्यु... तथा शिबिरनी पत्रिका पण मळी छेजी।
पुस्तकनुं तो मुखपृष्ठ ज अटलुं आकर्षक छे के जोईने तुरंत खोलीने वांचवानुं मन थाय पुस्तकमां पण आपे विषयो थोडां हळवा-थोडां भारे अने वच्चे कथाओ... वि. लईने अवं सुंदर संकलन कर्यु छ के... वांचनार जरा पण बोर न थाय । तेनो रस टकी रहे...अने तेने घj घणुंजाणवा-समजवा मळी रहे। आपे अमने याद करी पुस्तक मोकलाटयुं । ते आपनो मोटो उपकार...!
द.सा. प्रियंवदाश्रीनी भावभरी वंदनावली
जेतुं छे । नारकीय यातनाओनुं वर्णन वाचता अक वार तो है\ हलबली उठ्या विना नहिं रहे। अमां पण चित्रोनुं माध्यम भळे, पछी तो अनी असरकारकता अनेकगणी वधी गया विना रहे खरी ?
नारकीय यातनाओनी सर्वांगीण व्यथा-कथा जाणवी होय, तेमज नरकना कारणो-वारणोथी माहितगार बनवू होय, तो आ प्रकाशन वांचईं अने वसावतुं ज रह्यं । “ “हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार” आ सज्झाय कडी आपणे गाइअ छीओ तो अकवार, पण अ गानमां दिलनुं दर्द उमेर होय तो, आ पुस्तक वहेली तके हाथमा लेवू ज रह्यु...
A कल्याणथी उधृत - पू.आ. श्री पूर्णचन्द्रसूरि म.सा.
"हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँनरक मोझार” “नारकी चित्रावली' आदि अनेक पुस्तको नरकनी भयंकरता समजवा, समजाववा माटे उपयोगीथाय अवाछे। अबधा प्रश्नोने नजर समक्ष राखीने मोटी साइझमा सविस्तर-सचित्र प्रकाशित छेल्लामां छेल्ला प्रकाशन अटले ज "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" आकर्षक रूप-रंग-साइझमां प्रकाशित आ पुस्तक नाना मोटा ९०५ शीर्षक, पेटाशीर्षक धरावे छे । आमां अनेक चित्रो द्वारा लेखन समजण अने सचोट बनाववानो पुण्य-प्रयास थयो छे।
सात नारकी अंगेनी नानी मोटीलगभग तमाम समजण सुंदर शैलीमां आपवामां आवी छे। अनेकानेक शास्त्रीय दृष्टांतो रजु करवा पूर्वक लखाणने वधु रोमांचक अने असरकारक बनाववानो प्रयास थयो होवाथी आ प्रकाशन खरेखर अकवार तो वाचवा
प.पू. गणिवर्य श्री विमलप्रभविजयजी म.सा. सुखशातापृच्छा-वंदना शातामां हशो।
पू. गुरुदेवश्री शातामा छ। वि । आपश्री द्वारा लिखित "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार” खरेवर ! चिंतनात्मक, प्रेरणात्मक अने परलोकनी दुर्गति प्रत्ये जागृत करवामां निमित्तरुप छ । वर्तमानमां पापोनो कोई पार नथी कारण के जीवोने दुर्गतिनी भयानकतानो स्टयाल, विचार नथी।
आ पुस्तक जोया-वांचन पछी लाग्युं के वांचन-चिंतन पश्वात अनेक जीवोना जीवनमा परिवर्तन थशे । मौज-शोख अने फेशनना व्यसनोमां ग्रस्त आजनी पेढीओने धर्म प्रत्ये श्रद्धा जगाववा माटे आवा पुस्तकनुं आलेखन आवश्यक छ । छतां, पडतो काळ छ। जे पामी जाय ते खरा!
आ पुस्तकनी उपलब्ध होय तो ९० कोपी अथवा पांच कोपी तो अवश्य मोकलशो, जरूर छ । शेषानंद छ।
cal मु. निपुणरत्नविजय (बेंगलोर)
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हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!