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स्थल पर लाया जाय तो वह तुरंत ही चैन से जायेगा जैसे कि वहाँ जरा भी ठंड नहीं है ।
नरक में से उठाकर यदि नारकी जीव को शीत हीम पुंज जैसे हिमालय पर्वत की चोटी पर महा मास की ठंडी में प्रवेश कराया जाय तो वह भूख और ठंड भूल जायेगा । उसकी काया उष्ण हो जायेगी। वह सो जायेगा। उसका यहाँ सुख महेसुस होगा इतनी भयानक ठंडी वहाँ नरक में होती है ।
६२) नारकी में भूख और प्यास कैसी होती है ?
नारकी के जीवों को इतनी ज्यादा भूख और प्यास होती है कि पुरे समुद्र का पानी उसे पिलाया जाय या पृथ्वी के सब धान्य खिलाये जाय तो भी उसकी भूख प्यास मीटती है। दुनियाभर के घी, दूध और अनाज खाने को मिले फिर भी तीव्र क्षुधा के कारण वे कभी तृप्त नहीं होते ।
६३) नारकी में वैक्रिय शरीर की विकुर्वणा वैक्रिय शरीर एक रूप भी बना सकते है और बहुत से रूप भी बना सकता है। उसें एक रूप करवत, खड्ग, हल, गदा, मुद्गल, नाराच बरछी, त्रिशुल आदि संकल्पित होते है। ये सब रूप संख्याता ही होते है असंख्याता नहीं । ऐसे रूप की विकुर्णा कर वे एक दुसरों की काया में वेदना उत्पन्न करते है । ऐसी भारी वेदना अति कर्कश, डरावनी, निष्ठुर प्रचंड तीव्र दुःखदायक पाँच नरक तक होती है। छुट्टी और सातवी नरक में नारकी लोहे के बारिक कंथुआ वज्र मुख जैसा रूप की बनाते हैं और एक दुसरे की काया में रखते है। ये कंथ नारकी के जीवों की चमडी का भक्षण करते हुए उनके शरीर में प्रवेश कर जाते है और भयंकर दुःख और वेदना खडी करते है ।
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६४) रत्नप्रभा आदि पृथ्वी (नरक) के आवासो में वर्ण, स्पर्श, गंध आदि :
वर्ण : काला । काली प्रभा इतनी डरावनी होती है कि उसे देखकर रोंगटे खडे हो जाय । सातों नरक अत्यंत भयानक और त्रासदायक काली होती है। उसका दर्शन और
गाय, कुत्ते, बिल्ली, पाडा, चूहा, चित्ता, शेर आदि मृत कलेवर मरने के बाद दुर्गंध मारता है। ऐसी गंध और उसमें
हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
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कीडे पड़ जाय ऐसा अपवित्र, घिनौना दृश्य हो उससे अनंत ना अनिष्ट मनोरम दृश्य और दुर्गंध नरक में होती है ।
स्पर्श : खडग् की धार, शस्त्रों की नोंक, तोमर हथियार की सुइ वींछी का कांटा, नीर्धूम अग्नि का स्पर्श, दीपशिखा का स्पर्श निभाडा के अग्नि का स्पर्श, शुद्ध अग्नि का स्पर्श आदि सब स्पर्श से भी अणिवाला अनंत गुना स्पर्श कावास में होता है ।
गंध: शिर घूमने लगे ऐसी भयंकर दुर्गंध वहाँ होती है । टट्टी, पेशाब, खून, मांस, पँरू, चरबी के जैसी खराब गंध वहाँ होती है।
रस : वहाँ की भूमि के पदार्थों का रस कडवे नीम जैसा होता है । वहाँ मधुर रस का नामोनिशान नहीं होता है ।
स्पर्श : वहाँ पर स्पर्श सांप बिछ्छू जैसा अति उष्ण और गरम होता है।
शब्द : बेचारे जीव दर्द और पीड़ा से सतत चीखने चिल्लाते रहते है। रोते हुए आवाज में कहते रहते है कि ओ मां, ओ बाबा, मुझे छुडाव, मुझे बचाइये। ऐसे अनेकप्रकार के त्रासदायक दर्दनाक आवाजे सुनकर करूणा उत्पन्न होती है ।
गति : उंट, गर्दभ आदि प्राणी जैसा अप्रशस्त गति नामकर्म के कारण होती है इसलिये नारकों की चाल भी खराब होती है ।
वेदना : घोर अंधेरे में परस्पर युध्ध करते हैं इसलिये मारना, काटना, पीटना चालु ही रहता है और जीव पीडीत रहता है।
नरक में लेश्या: नारकीओं के विचार अशुभ होते है । शरीर बेडोल कढंगा, कुरुप, हुंडक, संस्थानवाला, गंदा होता है । कृष्ण, कपोत और नील तीन लेश्याएं अशुभ होता है । वहाँ परस्पर एक दुसरे को मारने कुटने के ही विचार जीवों
होते है इसलिये शुभलेश्या का अभाव ही रहता है। वैसे वहाँ पर सम्यक् दृष्टि जीव की लेश्या शुभ होती है। सातवी और छट्टी नरक में पाँचवी नरक का नीचे का हिस्सा
कृष्ण लेश्या कृष्ण लेश्या