Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 29
________________ है। असंख्य सुई एक साथ चुभाने पर जो वेदना होती है वैसी छात्रो को पढ़ाता था। एक बार नारद पर्वत से मिलने गया तीव्र वेदना झेल रहा है। एक साथ अनेक महारोग का उदय तब पर्वत छात्रोको अज का अर्थ बकरा बता रहा था। यज्ञ हुआ था। में अज का होम करो मतलब यज्ञ में बकरे की बलि चढाओ। प्रभु के द्वारा यह वर्णन सुनकर गौतम स्तब्ध रह यह सुनकर कितने ही विधार्थी ऊपर-नीचे हो गये । चतुर गये और मुँह में से शब्द निकले - साक्षात नरक यही तो है नारद ने कहा अपने गुरु ने अज का अर्थ... किया है और और क्या ? प्रभु ने कहा है गौतम ! ३२ वर्ष की आयु इस इस अर्थ से पाठ किया है उसने स्पष्ट कहा अज - जिसका स्थित में पूर्ण करके यहाँ से मरकर सिंह योनि मे जन्मकर __ जन्मफिर से न हो। जूनी डाल को फिर से जमीन में उगाओ फिर १ ली नरक में जायेगा। ऐसे अनेक भव नीची गति मे तो उगती नहीं है । पर्वत को नारद की बात स्वीकारने में पूरा करेगा। सच में, पाप की सजा खूब भारी है यह प्रसंग अपमान लग रहा था। इसलिये हठपूर्वक कहने लगा- अज विपाक सूत्र के ११वें अंगसूत्र में दुःख विपाक नाम के प्रथम मतलब बकरा और यज्ञ में होम करने की बात है। नारद अध्यन में आता है। उसे मित्र वसुराजा के पास ले गये जिसकी सत्यवादी के तौर पर किर्ती फैली हुई थी। पर्वत ने शर्त रखी की जो झूठा आत्मन : प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् पड़ेगा उसे अपनी जीभ काटनी पड़ेगी। दोनो ने शर्त मान स्वतः के लिये जो प्रतिकुल है उसे दुसरो के प्रति । ली और वसुराजा के पास जाना निश्चित किया। कभी आचरण नहीं करना चाहिये । इधर पर्वत ने यह बात अपनी माता को बताई। माता २०) असत्य का फल - कौशिक तापस एकदम दुःखी होकर बोली तुम्हारे पिता जब पढाते थे तब ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिये जिससे दुसरे को पीड़ा मैने भी सुना है अज का अर्थ यज्ञ में क्या बकरे को होम हो हो या दुःख पहुँचे । कौशिक तापस की बात सुनकर पता सकते है ? अरे ! अब तू क्या करेगा ? पुत्र को बचाने माँ चलेगा वसुराज के पास गई। पर्वत, नारद प्रेम वशीभूत होकर गलत अर्थ पर सहमति देकर पर्वत को बचाया जा सके, यह कौशिक तापस गंगा किनारे रहता था। लोगो में स्वीकार किया। उसकी गिनती सत्यवादी के के रुप में होती थी। कछ चोर पास के गांव से चोरी कर दौडते हुए पास की झाड़ी में घुस तीसरे दिन पर्वत, नारद वसुराजा के पास गये और गये। उनके पीछे गांव के लोग भाले - तलवार लेकर चोरों अपने पक्ष प्रस्तुत किये गुरुमाता को दिये वचन में बंदी होने को ढूंढने आये। लोगोने चोरो के बारे में तापस से पूछा - के कारण पर्वत के पक्ष में निर्णय दिया । स्वीकार लिया कहते की आप तो सत्यवादी हो कृपा कर बताओ कहाँ छुपा गया की अज का अर्थ बकरे का होम करना यज्ञमें। है चोर ? कौशिक विचारने लगा - सत्यवादी नाम से प्रसिद्ध यह अर्थ का अंतर सुनकर शासनदेवी कोपायमान हूँ तो झूठ बोल नहीं सकता । उसने बता दिया चोरों का हुई, सत्य के कारण जो देव वसुराजा के अनुचर थे छुट गये ठिकाना और लोगोंने चोरों का वहाँ जाकर मार डाला। इन और सिंहासन से नीचे उतार दिया । सत्यवादी झूठा करार सब सत्य बोलने से पहले जीवदया - जीवरक्षा, अहिंसा हिंसा दिया गया। पर्वत भी राज्य छोडकर चला गया और अंत में आदि का ख्याल करना चाहिये। कौशिक मर कर नरक में सत्य की विजय हुई सत्य मेव जयते । वसुराजा और पर्वत गया। दोनो मरकर नरकगामी बने जूठ बोलने हेतु से २१) वसुराजा - झूठा अर्थ समझने के कारण २२) दत्तराजा ने आचार्य कालकासूरि को मृत्यू की वसुराजा नर्क में गये। धमकी दी पर उन्होंने असत्य कथा नहीं करा । वसुराजा सत्यवादी के नाम से प्रसिद्ध था। उसके दो अल्पादपिमृणावादाद, रौरवादिषु सम्भवः । मित्र थे नारद और गुरुपुत्र पर्वत । पर्वत कुलपति हुआ और अन्यथा वदतां जैनी, वाचं त्वहहः का गतिः ।। (29) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!

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