Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 27
________________ वही जीव को जन्म दे सकता है । मृत पदार्थ में से जीवन संभव ही नहीं । जन संख्या कम करने की यह एक नीच - खूनी चाल है। कुँवारी माता लोकलाज के कारण गर्भपात कराती है उससे कही ज्यादा विवाहित महिलाएँ कायदे के आधार पर खुलेआम भ्रूण हत्या करती है। बच्चे नहीं चाहिये तो विवाह क्यों किया ? मौज करने के लिये लग्न किये तो फिर सुरक्षा साधन नहीं चापरे और अगर भूल हो गई तो उसे नही भुगतनी ? अकाल समय पर निकाले गये शिशु अगर माँ-बाप के समान कोर्ट में खडे हो तो ? या सरकारी वकील की उन्हें मदद मिले तो ? अपने माँ-बापने अपने को इस प्रकार निकाल बहार फेंका होता तो ? अनइच्छित बालक को जीवन प्रदान करने से बेहतर है उसे गिरा देना । अगर ये दलील चल सकती है तो आने वाले समय में अनइच्छित पत्निया को जला देना एक दिन राष्ट्रसेवा माना जायेगा । अंधे, लूले, लंगडे या मंदबुद्धि बालकों को और बोझ रुप बने वृद्धों को भी जहर का इंजेक्शन देकर खत्म करने का कानून बन सकता है। लोक में बहुत पाने वाले के मनपसंद कानून बन सकता है । सत्ताधारीओंको भी बहुमती के मतकी जरुरत पडती है। बहुमती समाज बीडी, सिगरेट, दारु, भांग आदि नशा करें तो कल्याण राज्यमें क्या शिष्टाचार गिना जायेगा ? डोक्टरों के सोगंधविधि में स्पष्ट कहेने में आता है कि गर्भपात करके हमने कितने राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गांधी, नेहरु और अन्य महान विभूतिओं को धरती पर आने से पहले ही मार डालते है। मैं डॉक्टर बना जीवन बचाने के लिये - जीवन नाश करने के लिये नहीं । गर्भपात यह सब पढ़ने के बाद संकल्प करें कि जीवन में कभी से पाप (भ्रूण हत्या) जो सीधा नरक गति में ले जाता है। अतः हम नहीं करेंगे । भूल से अगर ये पाप हो गया तो किसी महापुरुष या गुरु भगवंत के पास जाकर पाप का प्रायश्चित सच्चे हृदय से करें और इसकी निंदा गर्हा बार२ करें तो बांधे कर्म निर्बल बनेंगे। शायद आयुष्य का बंध हुआ हो नरकादि की दुर्गति से बच सकते हो । (27) पशु-पक्षी भी अपने बच्चों से प्यार करते हैं। कुतिया कभी - २ अत्याधिक भूख के कारण अपने तुरंत जन्मे बच्चे को खा जाती है। आज की नारी तो बिना कारण बस स्वतः की मौज-मस्ती के निमित्त जन्मे बालकका खून करवा देती है। ये नारी तो उस कुतिया से भी गई-गुजरी | १७) पंचेद्रिय जीव की हत्या तिर्यच - गाय, बैल, बकरी, बाघ-सिंह, पक्षी, मछली आदि की हत्या से नरकायु का बंध होता है। श्रेणिक महाराजा ने शिकार के समय गर्भवती हिरणी की हत्या की और फिर उसकी प्रशंसा करी... नरकायु बंध हुआ और १ली | प्रभु महावीरका संसर्ग पाकर धर्म समझा तीर्थंकर नामकर्म बांधकर आनेवाली चौवीसी में प्रथम तीर्थंकर बनेंगे। पर हिरणी के शिकार द्वारा बंधी नरकायु में कोई परिवर्तन नहीं हुआ तो विचार करे आज के समय में कत्तलखाने चलाने वाले, मछली पकड़ने वाले, बचनेवाले आदि की गति होगी। मनुष्य की हत्या करने वाले और करवाने वाले भी नरक की हवा खाएंगे। मासांहार पंचेन्द्रिय जीव जैसे पशु-पक्षी, का मांस खाने वाले मछली आदि खाने वाले, मुर्गी चिकन आदि खाने ज्यादातर मृत्यु के बाद नरक में जाते है । मनुष्य क्रूर हत्यारा बन गया है। खुद की सुंदरता के लिये कितने ही सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करता है । जिनमें इन मूक जीवों से निकले पदार्थ मिलाये जाते है या फिर इन सौंदर्य-प्रसाधनों को तैयार करने के बाद खरगोश, बंदर आदि जानवरों पर टेस्ट परिक्षित किया जाता है यह ने के लिये की इनका कोई द्रव्य भाव उपयोग करने वा 'मनुष्य पर तो नहीं पडेगा । आजकल लिपस्टीक, परफ्युम आदि भी प्राणी जन्य ही चुके है। १०० ग्राम रेशम बनाने में १५०० रेशम के कीड़ो को उबलते पानी में डालकर मौत के घाट उतार दिया जाता है जरा विचार करे आपकी रेशम की साड़ी का वजन और उसमें होने वाली हिंसा की कल्पना कर हृदय हिल जायेगा... बैंग्लोर आदि शहरो में सिल्क रेशम के बड़े २ कारखाने है और उसमें मौत के घाट उतारे जा रहे रेशम कीड़ो की हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!!

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