Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 40
________________ तक जितने भी चक्रवर्ति हुए सब ने मात्र भरत क्षेत्र के छ: खंड को जीते थे । अनंतकाल में अनंत चक्रि बने और बनेंगे । सब T भरतखंड ही जीते है, घातकी खंड जीतने की इच्छा कोई भी नहीं करता, इसलिये तूं भी यह इच्छा छोड दे । भूम ने देवताओं की बात को टाल दिया और अपनी सेना लेकर लवण समुद्र के किनारे गया। उसने चर्मरत्नको हाथ के स्पर्श से विस्तार किया। उसपर पुरी सेना को बैठाकर समुद्र पार करने लगा । इस समय सब देवतागण सोचने लगे कि, चक्रवर्ति के बहुत से देव सेवक है मैं और मेरी शक्ति क्या काम आयेंगी। ऐसा सोचकर कोई देव उसे सहाय करने नहीं गया । समुद्र के मझधार में वह सेना सहित मर गया । वह में गया । इसलिये लोभ से सदा दूर रहना चाहिये । ४४) सातवी नरक ५ क्रोड, ६८ लाख, ९९ हजार ५८४ रोग सातवीं नरक में इतने सब रोग होते है। वहाँ दुखों की चरमसीमा होती है। सामान्य रोग भी हम सह नहीं सकते, उसे दूर करने के उपाय सदैव खोजते रहते है। वहाँ लाखों रोग सहते है । कोई डोकटर, वैद्य या माता-पिता, भाई न कोई स्वजन भी नहीं होता है। इसलिये न रोगों का इलाज संभव है, न आश्वासन के दो शब्द किसीसे सुनने मिलते है । वहाँ जीव की उत्पति से आयुष्य समाप्ति तक, कम से कम १० हजार वर्ष पर्यंत ५ करोड से भी ज्यादा भयानक दर्दो को एकसाथ नारकी के जीवों को सहना पड़ता है। ४५) कंदमूळ भक्षण नरक का अंतीम द्वार जमीन कंद में एक शरीर में अनंत जीव रहते है । थोडे से स्वाद की खातर अनंत जीवों का संहार। क्या आलू प्याज के बीना जीवन शक्य नहीं ? हाँ भोजन और जल के बीन जीव मर सकता है। जीभ के लिये नहीं पर जिनाज्ञा पालन तो मनुष्य भव में ही कर सकते हैं, कुत्ते, बिल्ली तिर्यंच में जन्म होगा तो त्याग और धर्म संभव न होगा। अनंत जीवों अभयदान देना हो तो लसन, आलु, गाजर, मूला आदि जीवन में से विदा कर लो। प्रभु ने हमें बत्तीसी अनंत काय को चबाने के लिये नहीं दी है। अनंत जीवों का नाश करेंगे। तो अगले भव में जीभ भी मीलनी मुश्किल होगी। हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (40) अनंत जगत मे । जमीन कंद में इतने जीवों का भक्षण होता हो फिर भी भगवंत के वचन पर अश्रध्धा रखकर बहुत से नास्तिक भोगविलास में मस्त रहते है। नरक कहाँ है ? ८ वी नरक तो ही नही ऐसे कुतर्क कर के नरक में जाते हैं। दुःखदायी नरक में चौबीसों घंटे सतत दुःख, भयंकर वेदनाओ गर्मीठंड - भूख- तृषा सहना पडता है । २४ घंटे फ्रीज का ठंडा पानी पीनेवाला किस प्रकार से गर्म शीशे का रस पीयेगा ? अति पापी, महा हिंसक, वैरभाव, मांस भक्षण दारु, परस्त्री सेवन, आरंभ परिग्रह आदि कर्मदान के व्यापार, पंचेन्द्रिय जीवों का वध जैसे घोर पाप करने के बाद वहाँ नरक में जीव उत्पन्न होता है। नरक के विषय में शंका : हर एक तीर्थंकर केवलज्ञान प्राप्ति के बाद तीर्थ स्थापन करते हैं और उपदेश देशना देते है । || गणधर अगर परस्पर संशय पूछते तो शंका निवारण होती थी । गणधरवाद में ८वें गणधर श्री अकंपित अपने आगे विद्वान पंडीत को प्रभु के पास वाद कर के निःशंक, निरुत्तर करदिक्षीत हुए जान कर चल गये । अकंपित अपने ३०० शिष्यों के साथ मीठा आवकार के साथ अकंपित आगे बढा, जिसने मेरा नाम और गौत्र के साथ बुलाया - गौतम गौत्रिय अकंपित सुख से पधारो । सुंदर मीठा आवकार के साथ अकंपित आगे बढा, जिसने मेरा नाम और गोत्र कहा है वह मेरे मन की शंका भी बता सकता है। अंकपित तो अभी मन में सोच रहा है, इतने में भगवान ने कहा “इया अत्थि-तप्तिति संसओ तुज्झ" हे अकंपित, जगत में नारकी जीव है क्या ? ऐसे प्रश्न- संशय तुम्हारे मन में हैं, वे सरांय भी तुझे वेद के पदों का अर्थ बराबर न करने से हुआ है । अब तुझे मैं वेद के पद कहता हूँ। एष जायतेय शुद्रान्न मश्नत्ति अर्थात जो ब्राह्मण • शुद्र के हाथ का अन्न खाता है वह नारकी बनता है । नरक में जाता है । दुसरा वेद वाक्य इस प्रकार है । नहीं वै प्रेत्य नारकाः सन्ति । अर्थात जीव मरने के बाद नाक नहीं होता । प्रथम वेद वाक्य नरक के अस्तित्व को

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