________________
साढ पोरीसीसे १०,००० वर्ष, पुरिमुड्ड से 1,00,000 वर्ष अवडढ़ से १० लाख वर्ष, एकासना करने से नारकी का जीव एक करोड वर्ष, आयंबील करने से १००० करोड वर्ष, नवी करने से नारकी का जीव १० करोड वर्ष, एकलठानुं से १०० करोड वर्ष, एक उपवास करने से १० हजार करोड वर्ष, अट्ठम, पक्वान करने (दस लाख करोड वर्ष ) नरक कमी होती है। अकाम निर्जरा द्वारा जो नरक जीव दुःख सहते हुए कर्मक्षय करते है। उन जीवों का जिज्ञासा से तपोबल से कर्मक्षय होता है। संपूर्ण १०८ नवकार गिनने से ५४००० सागरोपम, एक पूर्ण नवकार गिनेने से ५०० सागरोपम, नवकार के पद से ५० सागरोपम और मात्र नवकार का न एकाक्षर द्वारा ७ सागरोपम नरक का आयुष्यवध तुटता है। इस तरह तप और जप के प्रभाव से नर्क की दुःख भरी वेदनाएं कम होती है। नवलाख नवकार गिनता नरक निवारे ।
नरक का वर्णन सुनने के बाद, नरक है ऐसा विश्वास पैदा हो जाय तो जीवन परिवर्तन जरुर होता है। ज्यादातर लोगों को नर्क का भय नहीं है । रात्री भोजन नरक का प्रथम द्वार है, पर आप क्या उत्तर देंगे रात को खाना खाये बगैर कैसे चलेगा। नौकरी धंधे ही ऐसे हो गये है। जब परमाधमी आपके ऐसे बहाने सुनकर आपको छोड तो नही देगा । आप एक रात भी यहाँ भूखे नहीं रह सकते तो वहाँ नरक में हजारों, लाखो और अनगिनत वर्षो तक खाना भी नहीं मिलेगा और न पीने को पानी । उस समय भूख-प्यास कैसे सहन करोगे ? शायद आप ऐसा सोच रहे होंगे।
कि जो पाप करनेवालों का होगा वह मेरा होगा ऐसा समझकर पाप कर्म चालू रखा तो फिर नरक से कोन बचायेगा ? आप ऐसा सोच रहे हो कि नरक नहीं है । अगर नरक निकली तो क्या हालत होगी इतना विचार किया कभी ?
भगवान के परम भक्त श्रेणिक और कृष्ण को भी नरक में जाना पड़ा | भगवान से उनकी मुलाकात के पहले
काय उन्होने बाँध लिया था। आज जरा सा दुःख आते ही उपर-नीचे हो जाते हैं, फिर एक साथ नरक के इतने दुःख कैसे सहन करोगे । नरक में न जाना हो तो तप त्याग और संयम की साधना किजीये जिससे कर्मों
(15)
का क्षय होगा। तीर्थंकर के कल्याणक के समय सातों नरक उजाला (प्रकाश) होता है।
४ सातों नरक में प्रकाश वर्णन : प्रथम नरक में सूर्य के प्रकाश जैसा, दुसरी नरकमें बादल छाये हुए सूर्य जैसा, तिसरी नरक में पूर्णिमा के चंद्र जैसा, चौथी नरक में बदली छाड़ हुई चंद्र जैसा, पाँचवी नरक में ग्रहों के प्रकाश जैसा, छठी नरक मे नक्षत्र के प्रकाश जैसा, सातवी नरक में तारा के प्रकाश जैसा राजा श्रेणिक प्रथम नरक के प्रथम प्रस्तर में ८४ हजार वर्ष तक रहेंगे। लोक स्वरुप भावना एवं बृहत संग्रहणीमें नरक यातना का वृत्तांत रोंगटे खड़ा करनेवाला होता है ।
नरक में मुझे नहीं जाना : मगध सम्राट श्रेणिक पभु वीर को वंदना करने जा रहे हैं। वंदन के बाद पुछते है, भगवंत | मै मरने के बाद कहाँ जाउंगा। भगवान उत्तर देते है, तुम नर्क मे जाओगे। भगवान आपका सेवक नरक में जायेगा । हे प्रभु, कुछ ऐसा उपाय बताओ जिससे मेरा नरक का दुःख टल जाये दुःख की परंपरा ही खत्म हो जाये । आप जो कहेंगे सो करने को तैयार हूँ पर मुझे नरक में नहीं जाना | भगवान कहते है कि कर्म के आगे सत्ता - • संपत्ति, शक्ति सब कुछ किसी काम का नहीं, कर्म तुमने बाँधे तो उसका फल भी तुझे ही भुगतना पड़ेगा। तुमने शिकार किये, निर्दोष गर्भवती हिरण को तुम्हारे बाण का निशाना बनाया । दो दो जीवों को मारने के बाद भी तुझे तनिक भी दया नहीं आयी परंतु हर्ष हुआ। मै कितना पराक्रमी कि एक ही तीर से दो जीवों की हत्या की। उसी क्षण तुमने नरक का आयुष्य बाँध लिया था । उसे बदलने की न तुझमें या मुझमें शक्ति है । हंसते खेलते बांधे हुए कर्मो का फल तुझे नरक में भुगतने के अलावा कोई चारा न रहेगा। कर्म ने आज तक किसी
नहीं छोड़ा चाहे वह प्रभु वीर का परम भक्त श्रेणिक हो या लंकापति रावण हो या फिर नेमनाथ भगवान के चचेरे भाई श्रीकृष्ण महाराजा हो । नरकगति की अति तीव्र दारुण पीडा का वर्णन बिना अर्थात पापाचरण के नाश किये बगैर नरक से बच पाना मुश्किल है ।
दुलिया मच्छ: मगरमच्छ की पलक पर रहता है । मगर के मुँह में कितनी मछली फंसती है और कितनी छूट
हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!!