Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जत्थ कसायुपपत्तिरभत्तिंदियदारइत्थिजण बहुलं । दुक्खमुवसग्गबहुलं भिक्खु खेत्तं विवज्जेज्ज ॥। ६५१ ।। foratefani खेत्तं विदी वा जत्थ दुट्ठओ होज्ज । पव्वज्जा च ण लब्भइ संजमघादो य तं वज्जे ॥ ९५३ ॥
ढदि बोही संसग्गेण तह पुणो विणस्सेदि । संसग्गविसेसेण दु उप्पलगंधो जहा कुंभो ।। ६५६ चंडो चवलो मंदो तह साधू पुट्ठिमंसपडिसेवी । गारवकसाय बहुलो दुरासओ होदि सो समणो ॥ ६५७ ॥ वेज्जावच्चविणं विणयविहूणं च दुस्सुदि कुसीलं । समणं विराग होणं सुजमो साधू ण सेवेज्ज ॥ १५८ ॥
भं परपरिवादं णिसुणत्तण पावसुत्त पडिसेवं । चिर पब्वइदं पि मुगी आरंभजुदं ण सेवेज्ज || ६५६॥ चिरपव्वइदं पि मुणी अपुट्ठधम्मं असंपुढं णीचं । लोइय लोगुत्तरियं अयाणमाणं विवज्जेज्ज || ९६०॥ आयरियकुलं मुच्चाविहरदि समणो य जो दु एगागी । णय गेहदि उवदेसं पावस्समणोत्ति वुच्चदि दु ॥ ६६१ ॥ आयरित्तणं तुरिओ पुव्वं सिस्सत्तणं अकाऊण । fess ढुंढारिओ णिरंकुसो मत्तहस्थिव्व ।। ६६२॥ आयरियत्तणमुवणाय जो मुणि आगमं ण याणंतो । अप्पाणं विविणासिय अण्णे वि पुणो विणासेई ||६६५॥ घोsयलद्दिसमाणस्स बाहिर बगणिहुदकरणचरणस्स । अभंतर म्हि कुहिस्स तस्स दु किं बज्झजोगेहि ॥ ९६६ ॥ माहोह वासगणणा ण तत्थ वासाणि परिगणिज्जंति । बहवो तिरत्तथा सिद्धा धीरा विरग्गपरा समणा ॥ ६६७॥ सझायं कुव्वतो पंचिदिय संपुडो तिगुत्तो य । हवदि य एयग्गमणो विणएण समाहिओ भिक्खू ॥७१॥ वारसविहम्मि य तवे सब्भंतर बाहिरे कुसलदिट्ठे ।
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वि अणि विय होहदि सज्झायसमं तवोकम्मं ॥ ९७२ ॥ सूई जहा ससुत्ता ण णस्सदि दु पमाददोसेण । एवं ससुतपुरियो ण णस्सदि पमाददोसेण ॥१७३॥ णिद्दं जिणेहि णिच्चं णिद्दा खलु णरमचेदणं कुणदि । जहू पसुतो समण सव्वेसु दोसेसु ।।६७४ ।।
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