Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 10
________________ Jain Education International अट्ठणिछण्णं णालिणिबद्ध कलिमलभरिदं किमिउलपुण्णं । मंसविलित्तं तयपडिछण्णं सरीरघरं तं सददमचोक्खं ॥ ८५१॥ एदारिसे सरीरे दुग्गंधे कुणिमपूदियमचोक्खे | सडणपडणे असारे रागं ण करिति सप्पुरिसा ॥ ८५२॥ विविधम्मविरोही विवज्जए वयणं । पुच्छिदम पुच्छिदं वा ण वि ते भासति सप्पुरिसा ।। ८५५|| णिच्चं च अप्पमत्ता संजमसमिदीसु झाणजोगेसु । तवचरणकरणजुत्ता हवंति सवणा समिद पावा ॥ ८६४॥ हेमंते धिदिमंता सहति ते हिमरयं परमघोरं । अंगेसु बिडमाणं णलिणीवणविणासणं सीयं ॥ ८६५ ॥ जल्लेण मइलिदंगा गि उण्णादवेण दड्ढंगा । चेट्ठति णिसिट्ठगा सूरस्स य अहिमुहा सूरा ॥ ८६६॥ धारंधयारविलं सहति ते वादवाद्दलं चंडं । रतिदियं गतं सप्पुरिसा रुक्खमूलेसु ।।८६७॥ वादं सीदं उन्हं तहं च छुधं च दंसमसयं । सव्वं सहति धीरा कम्माण खयं करेमाणा ॥। ८६८ ।। दुज्जणवयण चडयणं सहंति अच्छोड सत्थपहरं च । णय कुपंति महरिसी खमणगुणवियाणया साहू ॥ ८६६ ॥ इंदिये पंचसुण कयाइ रागं पुणो वि बंधति । उहे व हारिद्दं णस्सदि राओ सुविहिवाणं ॥ ८७४ ॥ विसएसु पधावंता चवला चंडा तिदंडगुत्तेहि । इंदियचोरा घोरा वसम्मि ठविदा ववसिदेहिं ॥ ६७८ || जह चंडो वणहत्थी उद्दामो णयरराय मग्गम्मि । तिक्खकुसेण धरिदो णरेण बिढसत्तिजुसेण || ८७६ ॥ तह चंडो मणहत्थी उद्दामो विसयराजमग्गम्मि | जाणं कुसेण धरिदो रुद्धो जह मसहत्यिव्व ॥ ८७॥ ण च एदि विणिस्सरिदु मणहत्थी झाणवारिबंधणिदो । aat तह य पडो विराय रज्जूहि धीरेहिं ॥ ६७८ ॥ एदे इंदियतुरया पयडी दोसेण चोइया संता । उमंग णिति रहं करेह मणपम्गहं बलियं ॥ ६५१ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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