Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 9
________________ दुल्लहलाहं लधुण य बोधि जो णरोपमादेज्जो। सो पुरिसो कापुरिसो सोयदि कुगदि गदो संतो ॥७६१॥ जम्मणमरणविग्गा भीदा संसारवासमसभस्स। रोचंति जिणवरमदं पावणयं वड्ढमाणस्स ।।७७७।। गामेयरादिवासी णयरे पंचाहवासिणो धीरा। सवणा फासुविहारी विवित्तएगंतवासी य॥७८७॥ सीहा इव णरसीहा पव्वयतडकडयकंदरगुहासु। जिणवयणमणुमणता अणुविग्गमणा परिवसंति ।।७६४।। सज्झायझाणजुत्ता रत्ति ण सुवंति ते पयाम तु ।। सुत्तत्थं चितंता णिद्दाय वसं ण गच्छति ॥७६६॥ उवधिभरविप्पमुक्का वोस्सट्टगा णिरंबरा धीरा। णिक्किचण परिसुद्धा साधु सिद्धि वि मग्गंति ॥७६८॥ जिणवयणमणुगणेता संसारमहब्भयं हि चितंता। गब्भवसदीसु भीदा भीदा.पुण जम्ममरणेसु ॥८०७॥ लद्धे ण होति तुट्ठा ण वि य अलद्धेण दुम्मणा होति । दुक्खे सुहे य मुणिणो मज्झत्थमणाउला होति ।।८१८।। सुदरयणपुण्णकण्णा हेउणयविसारदा विउलबुद्धी। णिउणत्थसत्थकुसला परमपयवियाणया समणा ॥८३५॥ अवगदमाणत्थंभा अणुस्सिदा अगव्विदा अचंडा य । दंता मद्दवजुत्ता समयविदण्हू विणीदा य॥८३६॥ उवलद्धपुण्णपावा जिणसासणगहिद मुणिदपज्जाला। करचरणसंवुडंगा झाणुवजुत्ता मुणी होंति ॥८३७।। जिणवयणमोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमिदभूदं। जरामरणवाहिवेयण खयकरणं सव्वदुक्खाणं ॥८४३॥ रोगाणं आयदणं वाधिसदसमुच्छिदं सरीरघरं । धीरा खणमवि राग ण करेंति मुणी सरीरम्मि ॥८४५।। अट्ठि च चम्मं च तहेव मंसं पित्तं च सिंभं तह सोणिदं च । अमेज्झसंघायमिणं सरीरं पस्संति णिव्वेदगुणाणुपेहि ॥८५०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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