Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ जह ण चलइ गिरिराजो अबरुत्तर-पुव्वदक्खिणे वाए। एवमचलिदो जोगी अभिक्खणं झायदे झाणं ॥८८६॥ धीरो व इरग्गपरो थोवं हि य सिक्खिदूण सिज्झदि हु। ण य सिज्झदि वेरग्गविहीणो पढिदूण सव्वसत्थ इं॥८६६।। थोवम्हि सिक्खिदे जिणइ बहुसुद जो चरित्तसपुण्णो। जो पुण चरित्तहीणो किं तस्स सुदेण बहुएण॥८६६॥ णिज्जावगो य णाणं वादो झाणं चरित्तणावा हि । भवसागरं तु भविया तरंति तिहि सण्णिपायेण॥६००॥ णाणं पयासओ तओ सोधओ संजमो य गुत्तियरो। तिण्हं पि य संपजोगे होदि हु जिणसासणे मोक्खो ॥६०१॥ णाणं करणविहीणं लिंगग्गहणं च संजमविहूणं । दसणरहिदो य तवो जो कुणइ णिरत्थयं कुणइ ॥६०२॥ तवेण धीरा विधुणंति पावं अन्झप्पजोगेण खवंति मोहं। संखीणमोहा धुदरागदोसा ___ ते उत्तमा सिद्धिगदि पयंति ॥६०३॥ सम्मत्तादो णाणं णाणादो सव्वभावउवलद्धी। उवलद्धपयत्थो पुण सेयासेयं वियाणादि ।।६०५॥ सव्वं पि हु सुदणाणं सुठ्ठ सुगुणिदं पि सुठ्ठ पढिदं पि । समणं भट्टचरित्तं ण हु सक्को सुग्गई णेदुं ॥६०८॥ जदि पडदि दीवहत्थो अवडे किं कुणदि तस्स सो दीवो। जदि सिक्खिऊण अणयं करेदि कि तस्स सिक्खफलं ॥६०८॥ मूलं छित्ता समणो जो गिण्हादी य बाहिरंजोगं । बाहिरजोगा सव्वे मूलविहूणस्स किं करिस्संति ।।६२०॥ कि काहदि वणवासो सुण्णागारो य रुक्खमूलो वा। भुजदि आधाकम्मं सव्वे वि णिरत्थया जोगा ॥२५॥ जह वोसरित्तु कत्ति विसंण वोसरदि दारुणो सप्पो। तह को वि मंदसमणो पंच दु सूणा ण वोसरदि ॥६२७॥ बहुगं पि सुदमधीदं कि काहदि अजाणमाणस्स । दीवविसेसो अंधे णाण विसेसो वि तह तस्स ॥६३५॥ सम्मादिट्ठिस्स वि अविरदस्स ण तवो महागुणो होदि। होदि हु हत्थिण्हाणं चुंदच्छिदकम्म तं तस्स ।।९४२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 456