Book Title: Mokshshastra Author(s): Chhotelal Pandit Publisher: Jain Bharti Bhavan View full book textPage 7
________________ तत्त्वार्थसूत्रबहुबहुविधक्षिप्रानिःसृताऽनुक्तध्रुवाणां सेतराणाम् ।। १६॥ अर्थस्य ॥ १७॥ व्यञ्जनस्यावग्रहः ॥ १८॥ न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ॥१९॥ श्रुतं मतिपूर्व घनेकदादशभेदम् ॥२०॥ भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम् ॥२१॥ क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥२२॥ ऋजुविपुलमती मनःपर्यायः ॥ २३॥ विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां बहु बहु विधि छिपा अरु अनिसृत अरु अनुक्त निश्चल बरना॥ षट इनके प्रतिपक्षी लेकर ये बारह चितमें धरना । अबग्रहादि चारसि गुणकर फिर मनइन्द्रीस गुणना ॥६॥ सवैय्या। इह विध अर्थ अवग्रके भेद भये सब दोसै अठासी बखानो। मैन अरु चक्षुको छोड़ गुनो अड़तालिस भेद सु व्यञ्जन जानो यों सेब तीनसै छत्तिस भेद भये मतिज्ञानके चित्तमें आनो। पूर्व कहो श्रुतज्ञान सु ताके भेद अनेक हु बारह मानो ॥७॥ नारकि देवकों होत भवो क्षये उपशम कर्म रु कारण जानो। शेषनके षट भांति सु ज्ञात कहो सु अवधिबल ज्ञान बखानो। *जुमति और विपुल मनपर्यय भेद कहे दो वेद कहानो । .. पूर्वमतिज्ञान पूर्वक।Page Navigation
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