Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 43
________________ तरवाथसूज - विवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीताप्परिगृहीतागमनानङ्गक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशाः ॥ २८ ॥ क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिकमाः ॥२९॥ ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥३०॥ आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः राजविरोध सु काज कराय । घाटि देय अरु बाढ़ि लहाय ॥ बस्तुखरीमें खोटी डार । व्रत अचौर्य पांच अतिचार ॥२०॥ पैरैविवाह कारण उपदेश । और कुशीलीइस्त्री वेश ॥ परइस्त्री व्याही जो होय । तथा और अन व्याही सोय ॥२१॥ तिनको मुख अरु अंग निहार । तथा अनंगक्रीडा निरधार तीव्र काम निज बनिता भोग। ब्रह्मचर्य अतिचार अयोग ॥२२॥ खेत और घर रूपो जान । सोनो पशु अरु अन्न बखान ॥ दासी दास रु कपड़ा आदि । इनके बहुत प्रमाण सु बाद ॥२३॥ अतीचार अपरिग्रह पांच । इह विध सूत्र कहो है सांच ॥ दिशि रु विदिशि उलंघन जान । ऊंचो नीचो क्षेत्र बखान ॥ क्षेत्रप्रमाण भूलकें जाय । मन मानो तसु लेय बढ़ाय ॥ अतीचार दिगव्रतके आंहिं । ऐसो कह्यो सूत्रके माहिं ॥२५॥

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