Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 48
________________ भाषा छंद सहित । दुभयान्यकषायकषायो हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सा स्रीपुनपुंसकवेदा अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोभाः ॥९॥ नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि ॥ १० ॥ गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धनसङ्घातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यागुरुलघूपघातपरघातातपोद्योतोच्छासविहायोगतयःप्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तिस्थिरादेययश कीर्तिसेतराणि तीर्थकरत्वं च॥११॥ रति अरति हांस्य अरु शोक चीन । भय जान जुगुप्सा वेद तीन॥ जा उदय नहिं सम्यक्त होय । चउ अनन्तान बन्धीय जोय॥१०॥ जा उदय नहिं व्रत देश धार । सो अप्रत्याख्यानी असार ॥ जाउदये महाव्रत नाहिं होय । लख ताहि प्रत्याख्यानी सुजोया११ इह यथाख्यात चारित्र भाव। संज्वलन उदयें इनको अभाव ॥ इक एक भेद मो चार चार । कुह मान लोभ माया निहार ॥१२॥ लेख आयुकर्म के चार भेव । नारक तिर्यंच मनुष्य देव ॥ आउदय भवांतर जीव जाय। सो जानो गतिको भेद भाय ॥१३॥ जाउदयें इक इंद्रियादि पांच । सो ग्रहै जीव जा जान सांच ॥

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