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तत्वार्थसूत्रन्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः॥९॥
इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे दशमोऽध्यायः ॥१०॥ व्यवहार रूप आरज सुक्षेत्र । अरु काल चतुर्थम लख पवित्र॥८ मानुषगति लिंग पुलिंग जान। तीर्थकर गणधर सुगुण खान॥ अरु यथाख्यात चारित्र धार । निजशक्ति जान प्रति शुध निहार | परके उपदेश सु बुद्धि होय । जे लहैं मोक्ष संशय न कोय॥ मतिज्ञान आदि इस्थिति निहार । फिर केवलज्ञान लहै सुसार१० शत पांच धनुष उत्कृष्टि देह । अरु जघन हाथ त्रय अई तेह ॥ उत्कृष्टि समय छैमास जान । अरु जघन समय सो एक मान लख जघन समय इक सिद्ध होय। उत्कृष्टि समय शत अष्ट जोय॥ अल्पख बहुल सु भेद जान । इम साधन सिद्ध समूह मान १२
दोहा। तत्वारय यह सूत्र है, मोक्षशास्त्रको मूल। दवाध्याय पूरण भयो, मिथ्यामतिको शूस ॥१३॥