Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 64
________________ - भाषा छंद माहित। रमूघ गच्छत्यालोकान्तात् ॥ ५॥ पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्वन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच ॥ ६॥ आविद्धकुलालचक्रवद्यपगतलेपालम्बूवदेरण्डबीजवदमिशिखा वच्च ॥७॥ धर्मास्तिकायाऽभावात् ॥ ८॥क्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितजानावगाहना केवलदर्शन सिद्धत्व जान । इन भेदन मोक्ष लखौ सुजान॥ यह जीव करमक्षयके अनंत । ऊंचेको जोय सु लोक अंत३ जिर्य ऊर्द्ध गमनको निमित जान। पूरब प्रयोग सो चित्त ठान ॥ फिर कर्मयोग रहित मान। अरु कर्मबंधके क्षय बखान ॥४॥ अध ऊर्ध्वगमनको भाब जोय। जे निमित सूत्र भाषो है सोय॥ लखकर कुम्हारकी चक्ररीति । पूरब प्रयोग जानो सुमीत ॥५ कर लेप तोमरीपै सु भार । जल माहिं होय ताको निखार ॥ तव लेपरहित ऊपर तिराय । त्यों ही संगति गत कर्म भाय॥ बन्धन टूटत एरंडबीज । ऊपर उछलत महिमा लस्त्रीज ॥ लख अगिनिशिखा ऊपर विहार । यों कर्मबंधको क्षय निहार ॥७ धर्मास्तिकायको लख सुभाय । आकाश लोक आगें न जाय ॥

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