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भाषा छंद सहित। काशी नगर सु आयकैं, शैली संगति पाय । सबकों हित सु विचारक, भाषा सूत्र कराय ॥३॥ उदयराज भाई लखौ, शिखरचंद गुणधाम । तिनप्रसाद भाषा करी, भाषासूत्र सु नाम ॥४॥ छंद भेद जानो नहीं, और गणागण सोय । केवल भक्ति सु धर्मकी, बसी सु हृदयें मोय ॥५॥ ता प्रभाव या सूत्रकी, छंद प्रतिज्ञा सिद्धि । भाई भविजन शोधियो, होबै जगत प्रसिद्धि ॥६॥ मंगल श्रीअरहंत हैं, सिद्ध साधु वृष सार। तिननुति मनबचकायकें, मेटौ विधन विकार ॥७॥ छन्दबन्ध श्रीसूत्रके, किये शुद्ध अनुसार । मूल ग्रंथकौं देखकर, श्रीजिन हृदयें धार ॥८॥ कुआरमासकी अष्टमी, पहिलो पक्ष निहार । अडसठ ऊन सहस्र दो, सम्बतरीति विचार ॥९॥ जैसी पुस्तक मो मिली, तैसी छापी सोय । . शुद्ध अशुद्ध जु होय कहुँ, दोष न दीजै मोय ॥१०॥ ..इतिश्रीभाषा तत्वार्थसूत्र छंदबंध संपूर्ण ।