Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 62
________________ - भाषा छंद सहित । वनातीर्थलिङ्गलेश्योपपादस्थानविकल्पतःसाध्याः॥४७॥ इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे नवमोऽध्यायः ॥९॥ उत्तरगुण भा0 नहिं भाव । कोऊ क्षेत्रकालके भाव । व्रतकी पूरणता नहिं होय । तातें नाम पुलाक जु सोय ॥ दृढता मूलगुणनके माहिं । राग उपकरण शरीर कराहिं ॥ वकुशनाम जगत विख्यात । भेद कुशील लखौ दो भांति ॥ प्रतिसेवन सु कषाय कुशील । उत्तरमूल धरै गुण शील ॥ पुस्तक शिष्य कमंडलु देह । इनमें राखै भाव सनेह ॥ उत्तरगुण सु विराधन करै । प्रतिसेवन तसु नाम सु धेरै ॥ हैं अधीन संज्वलन कषाय । नाम कुशील कषाय कहाय । जाके केवलज्योति तुरंत । अंतमुहरतके उपरंत ॥ सो निर्गथ जगतके भान । इसनातकको सुनो बखान ॥ कर्मघातिया नाशे सबै । होय सयोगकेबली तबै ॥ चारित्र हानिवृद्धिसों होय । ऐसे पांच भेद मुनि जोय ॥ संयम आदि आठ अनुयोग। तिनकर साधन सब मुनियोगn उत्तम श्रुति दश पूरब कही । केवलज्ञान विराधन सही ॥ सब तीर्थकरवारेमाहिं । पांचौ मुनि निग्रंथ कहांय ॥ - -

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