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भाषा छंद सहित |
न्तरोपध्योः ॥ २६ ॥ उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमाऽऽन्तर्मुहूर्तात् ॥ २७ ॥ आर्तरौद्रधर्म्यशुक्लानि ॥ २८ ॥ परे मोक्षहेत् ॥ २९ ॥ आर्तममनोज्ञस्य सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः ॥ ३० ॥ अरु संदेह निवारै सोय । नाम प्रच्छना तसुको होय || ३२ ॥ बारम्बार सु तत्वविचार | अनुप्रेक्षा कहिये निरधार ॥ शब्द उचार सु शुद्ध कराय । आम्नाय तसु नाम कहाय ॥३३॥ पर उपकार धर्म उपदेश | इहविध पांच प्रकार भनेश ॥ दो" परकार परिग्रह जान । वाहर भीतरको परिमान ॥ ३४ ॥ धौरी बज्र वृषभ नाराच । और बज्रनाराच नराच ॥ ऐसो मुनि इक आम दर्व । तथां और कोऊ निर्गर्व ॥ २५ ॥ लै आलम्बन चिंता छोड़ | मनको रोकै ध्यान सु मोड़ ॥
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अन्त मुहूरतकाल सु ध्यान । उत्तम मध्यम जघन बखान ॥ ३६ ॥ आरति रौद्र अशुभ दो ध्यान । धर्म शुकल शुभजान महान || | धर्म शुक्ल शिवहेत दु ध्यान । आर्त्त रौद्र भक्कारण जान ॥ ३७॥ अनिष्ट वस्तु संयोग जु होय । तासु नाश चित चिंता सोय || अनिष्टसंयोग सु आरति ध्यान । इष्टवियोग आरति चित मान३८