Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan
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तत्त्वार्थसूत्रनुचिन्तनमनुप्रेक्षाः॥ ७॥ मार्गाच्यवननिर्जरार्थ परिपोढव्याः परीषहाः ॥ ८ ॥ क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमसकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशवधयानालाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानाऽदर्शनानि ॥ ९॥ सूक्ष्मसाम्परायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चआकिंचन निरपरिग्रह वीर । ब्रह्मचर्य मैथुन तजि धीर ॥ 'यहविधि दशविध धर्म निहार। कहो सूत्रमें सब निरधार ॥७॥ छिनभंगुर सो अनित बखान । अशरण कोउ शरण नहिं जान॥ भ्रमण चतुर्गति है संसार । सुख दुख भोगत एक निहार ॥८॥ जीव अन्य अन्यत्व विचार । वपु अशौच पुनि है निस्सार ॥ आगम कर्म सु आस्रब जान । कर्म रुकेपर संवर मान ॥९॥ एकदेश करमनि क्षय होय । निरजर नाम कहावै सोय ॥ | लोकविचार सु लोकाकार।दुर्लभ ज्ञान जान मन धार ॥१०॥ तीनरतन दशधर्म स्वभाव । द्वादशानुप्रक्षा मन लाव ॥ मोक्षमार्ग च्युत नहिं होय। निर्जर कर्म करै दृढ़ सोय ॥११॥ बाईस परीषह इह विध जान।ळुधा तृषा अरु शीत बखान ॥ उष्ण और मच्छर उपसर्ग ।नगन अरति अरु इस्त्री बर्ग ॥१२॥

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