Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 55
________________ तस्वायंसूत्र । ॥ १५॥ वेदनीये शेषाः ॥ १६ ॥ एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नेकोनविंशतेः॥१७॥सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम् ॥ १८॥ अनशनावमोदर्यवृत्तिपरिसङ्ख्यानरसपरित्यागविविक्तशग्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः याचना करकस बचन कहो परशंसा अस्तुति सात सु हृद्या ॥ वेर्दनि कर्मउदयतें गिनो सब ग्यारह शेष परीष बताई। एक समय इक जीव विर्षे इक आदि उनीश परीष जताई ॥१९॥ सौंमायिक व्रत्त त्रिकाल सुनो उत्कृष्टि घड़ी छह २ सुकहाई ।। सब जीवविषै सम भाव करें तजि आरति रौद्र सु भाव लहाई । गुणमूल अट्ठाइस माहिं लगौ कोउ दोष मु ताहिं उथापहिं ज्ञानी॥ छेदोपस्थापन नाम कहो लख सूत्र विचार सु या विध ठानी।॥२०॥ हिंसादिक त्यागमें निर्मलता परिहार विशुद्धी नाम कहायो। सूक्षमसाम्पराय कहु ताको भेद सु सूक्षम लोभ लहायो ।। यथाख्यात चारित्र सुनो सो आतम सोई सु निरमल थायो। या विध पांच प्रकार लखौ शुभ चारित नाम सु सूत्र में गायो॥२१॥ | उपवाशी अल्प अहारी है इक दो घर गिन आहार लहा।।

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