Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 54
________________ भाषा छंद सहित । नभिसार-शान સ્થા શાસન પદ્ધ ભગ तुर्दश ॥ १० ॥ एकादश जिनका १२॥ वादरसाम्प राये सर्वे ॥ १२ ॥ ज्ञानावरणे नमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ ॥ १४ ॥ चारित्रमोहेनाग्न्यारति स्त्रीनिषद्याक्रोशयाच्ञासत्कारपुरस्काराः गमनासन शय्या परधान । बच कठोर बध बन्धन जान || जाच अलाभ रोग सु निहार । तृण कंटक इस्पर्श विचार ||१३|| नहिं मैलो मन मलिन शरीर । आदर और अनादर वीर || बहु तप कियो ज्ञान नहिं भयो । ऐसे ही दर्शन नहिं थयो ॥ १४ ॥ इनको विकल्प मन नहिं लहैं । सो बाईस परीषद सह ॥ सूक्ष्म साम्पराय छदमस्त | चौदह तीन सु गुणहिं प्रसस्त ||१५|| छदमस्त वीतरागको भेद । द्वादश गुनधाने मुनिवेद || चौदह होंय परीषह वीर । श्रुतमें ऐसो भाषों धीर ॥ १६ ॥ जिनसंज्ञा तेरमगुनथान । इनके ग्यारह नाहिं निदान || छेटे सातवें अठयें मान । और नवममें सरत्र सु जान ||१७|| ज्ञानावर्णी कर्म सुभाय । प्रज्ञा अरु अज्ञान कहाय ॥ अन्तराय अरु दर्शनमोह । होय अलाभ अदर्शन दोह ॥ १८ ॥ / छंद विजया । चरित्रमोह उदयतें लखौ नगनत्व अरति अरु इस्त्री निषध्या । શાળાક શ્રી વિજય

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