Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan
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तत्वाधसूत्र॥३५॥ सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः॥३६॥ जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि ॥ ३७॥ अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गोदानम् ॥३८॥ विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः॥३९॥
इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ सँचित बस्तु आहार सु देय । सचित मिलाय जुदा न करेय ॥ बस्तु सचित्त मिलो आहार । और पुष्ट रस जानो सार ॥ ३२ ॥ दुखकर पचै सु भुजै नाहिं। भोगुपभोग अतिचार कहांहिं॥ सचितमाहिं धारी जो बस्तु । और सचित ढांकी अप्रसस्त॥३३॥ परहस्ते मुनिभोजन देय । दाताके गुण मन न धरेय ॥ घरके काममाहिं फस जाय । मुनिभोजन बेरा विसराय ॥ ३४॥ आतिथिविभाग जान अतिचार । याही विध लख सूत्र मझार । जीवन मरण सु बाक्षांधार । मित्रनुराग सु पूर्व विचार ॥३५॥ पूरव भोगन प्रीति कराहिं । आगेकी वांक्षा उरमाहिं ॥ अतीचार सल्लेखन जोय । दृढ़ता पूर्वक जानो सोय ॥ ३६॥
पद्धरी छन्द । उपकार निमित्त सु दान देय। तसुनाम दान सो जान लेय ॥ सैरधान भक्ति अरु पात्र लेख । ता दान तनो जानो विशेष॥३७॥
दोहा । तत्त्वारथ यह सूत्र है, मोक्षशास्त्रको मूल । अध्याय सप्तमो पूरण भयो, मिथ्यामतिको शूल ॥३८॥

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