Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan
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भाषा छन्द सहित ।
॥ ३१ ॥ कन्दर्पकोत्कुच्यमौर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि ॥ ३२ ॥ योगदुःषणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३३ ॥ अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३४ ॥ सचित्तसम्बन्धसम्मिश्राभिषवदुःपक्काहाराः परमित क्षेत्र बाहरी बस्त । लेना देना सब अप्रसस्त ॥ तसु वाशी सँग शब्द करेय । अपनी देह दिखाई देय ॥२६॥ पुदगल क्षेप सु चेत कराय । अतीचार देशवत आय ॥ हास्य करै अरु क्रीड़ा काम । यहै बात वहु कहै निकाम ॥२७॥ मतलब अधिक जु काज कराय । भोग उपभोग लोभ अधिकाय॥ अतीचार अनरथदंड जान । ऊपर तिनको करो बखान ॥२८॥ योगैकुटिल सामायिक माहिं । आदर उत्सव चितमें नाहि ।। मूलपाठ कछुको कछू पढे। खवर नहीं मन संसय बढे ॥ २९ ॥ अतीचर सामायिक जान। या विध सूत्र कह्यो व्याख्यान ॥ निजे नैननसो देखे विना। कोमल बस्तु बुहारिन किना ॥३०॥ कोई वस्तु उठावें नाहिं । पूजाबस्त्र न असन धराहिं ।।
उतसाहि। ये प्रोषध अतीचार लहाय ॥३१॥

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