________________
भाषा छंद महित ।
सिद्धौ च ॥ १९॥ स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्वीन्द्रियावधिविषयतोधिकाः ॥ २० ॥ गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतोहीनाः ॥ २१ ॥ पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २२ ॥ प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ॥ २३॥ | ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लांतव स्वर्ग कपिष्ट सु शुक्र नवों गिनलाए ॥१॥ महाशुक्र सतार सु ग्यारम है सहस्रार सु आनत जानो। प्राणत आरण अच्युत मान सौधर्मनै सोलह वर्ग बखानो॥ तिन ऊपर नव नव ग्रीवक हैं अरु तिनपर नव नव अनुदिशि हैं। तिन ऊपर पंच पंचोत्तर हैं तिननाम सुने मन मोदत हैं ॥ १० ॥ प्रथम विजय वैजयंत सु दूजो तीजो जयंत सु नाम बतायो। पुनि चौथो अपराजित पंचम सीरथसिद्ध नाम लहायो ॥ वैभव सुक्ख समाज थिती लेश्या अरु तेज विशुद्ध पनो है। ज्ञान अवधि पहिचान विषय इन माहिं सुऊपर अधिक भनो है११|
गैति शरीर परिग्रह तथा, और जान अभिमान । इनमें हीन निहारिये, ऊपर उपर जान ॥ १२ ॥ लेश्या पीत सु जानियो दोय जुगलके मांहि । तीन जुगलमें पद्म है शेष शुक्ल शक नाहिं ॥१३॥
दोहा।