Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 24
________________ भाषा छंद लाहित । ॥५॥ पूर्वयोभन्द्राः॥६॥ कायप्रवीचाराआ ऐशानात् ॥७॥शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराः ॥८॥ परेऽप्रवीचाराः ॥९॥ भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णामिवातस्तनितोदधिद्धीपदिक्कुमाराः ॥१०॥ व्यन्तराः किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिपरकीर्नक अभियोग किलिविशक जान दश हैं। यह देवनकी जाति देव प्रति मान सु दश हैं ॥२॥ व्यंतर ज्योतिषमाहि त्रायत्रिंशत नहिं देवा । लोकपाल भी नाहिं जान यह निश्चै भेवा ॥ वांशी भवन सु देव और व्यतरके माही । दो दो इंद्र निहार रीति यह सूत्र कहांही ॥ ३ ॥ भाग कायकर जान स्वर्ग सौधर्म ईशाना । स्पर्श रुप अरु शब्द चित्तसों सुरगन थाना ॥ वर्ग ऊपरे देव रहित इस्त्री संयोगा । वाशी भवन सु देव जान दश भेद मनोगा ॥ ४ ॥ दोहा । असुर नाग विद्युत तथा, सुपर्न अग्नि रु वात । तनित उदधि अरु द्वीप दिग, दशकुमार विख्यात ॥५॥ । -

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