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तत्त्वार्थसूत्र
सर्गाचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ॥ ९ ॥ तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥१०॥
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दुःखशोकतापाक्रन्दनबधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसदेद्यस्य ॥ ११ ॥ भूतव्रत्त्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्यस्य ॥ १२ ॥ केवलि सीन तीन अरु तीन बखान । चार अंत मिलि हिंसाआन ||६|| दो भेद निर्वर्तना जान । चार भेद निक्षेप सु मान ॥ दो संयोग रु तीन निसर्ग | ये सब भेद सु आस्रव बर्ग ॥ ७||
सबैय्या तेईसा ।
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दर्शनज्ञान के धारककी अरु दर्शन ज्ञान बड़ाई न भावै । जानत हैं गुण नीकी तरह अरु पूछेंतैं गुण नाहि बतावै ॥ मागे न पोथी देय कभी विद्वान पुरुषसौ फेर सु राखै । गुणवानकों निर्गुण मूढ़ कहै सो दर्शन ज्ञान अवर्ण बढावै ||८|| दुख अरु शोक पुकार करै अरु माथा धुने अरु आंसू डारें । ताप करै परकारन होय सो जान असाता आश्रव पारै ॥ जीवन माहिं दयाल व्रती अरु वृत्तिनि दान देय सोभावें । अशुभ निषेधके हेतको उद्यम रक्षा करन छैकाय सुहावै ॥ ९ ॥ इंद्री निरोध सराग सु संयम चिंतन क्रोध करें नहिं लोभा ।
९ ये अवाधिकरण के भेद है ।