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भाषा छंद सहित । सदसद्गुणोच्छादनोद्भावने च नीचैर्गोत्रस्य ॥ २५ ॥ तविपर्ययो नीचैवृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य ॥ २६ ॥ विघ्नकरणमन्तरायस्य ॥२७॥ . इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्ष शास्त्रे षष्टोऽध्यायः ॥ ६ ॥ ____ हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्योविरतिब्रतम्॥१॥ जो नर ध्यावें मन बच काय । तीर्थकरपद आश्रव थायः ॥ पैरंगुण ढांक निंदा करैं । अपनो औगुन चित नहिं धरै ॥१८॥ अपनी थुती आप ही करें । नीचगोत्र आश्रव अनुसरै ॥ | निजे निंदा पर अस्तुति जान । अपने गुण आछादन मान॥१९/ पर औगुण प्रघटा नाहिं । पुनि उत्तमगुण प्रघट कराहिं ।। उंचगोत्रको आश्रव जान । ऐसो सूत्रमाहिं ब्याख्यान ॥२०॥
- सोरठा।
धर्मकार्यके माहिं, विघन करै संकै नहीं । आश्रव अशुभ लहाहिं, अंतराय दुखदायको ॥२१॥
दोहा। तत्त्वारथ यह सूत्र है, मोक्षशास्त्रको मूल | छटाध्याय पूरण भयो मिथ्यामतको शूल ॥२२॥
चौपाई। | हिंसा अनिरत चोरी जान । अब्रह्म और परिग्रह मान ।