Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 34
________________ भाषा छंद सहित। साम्परायिके-पथयोः॥४॥ इन्द्रियकषायाव्रतक्रियाः पञ्चचतुःपञ्चपञ्चविंशतिसंख्याः पूर्वस्य भेदाः ॥ ५॥ तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्ताहिशेपः॥ ६ ॥ अधिकरणं जीवाजीवाः॥७॥ आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः॥८॥ निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिमिाती उपशांतिक सु जीव । तिनकें हुय आश्रव कर्मतीव॥२॥ चौपाई। इंद्री पांच कषाय जु चार । अव्रत भेद सो पांच निहार ॥ किया भेद पच्चीस बखान । जे सब आश्रव भेद सुजान ॥ ३ ॥ तीन मंद आश्रवकौं मान । भाव विशेष जान उनमान ॥: आँश्रव जीव अजीव निसार। या बिध सूत्र कहो निरधार ॥४॥ जीर्वघात कृतकरन अभ्यास । और होय आरम्भ सु तास ॥ मन बच काय योग अनुसरे । पर उपदेश आप जो करै ॥ ५ ॥ परहिंसा अनमोद करत । चार कषाय विशेष धरत ॥ __ सकषायके सांपरायिक आस्रव होता है और अकषायके इर्यापथ आसव होता है । ६ भावविशेषसे ज्ञात अधिकरण वीर्य आदि समझने. चाहिये । " ये अधिकरणके भेद है। ८ कृतकरन - सरंभ । अभ्यास - समारंम । इन सबको परस्पर गुणा करनेसे १.८ मेद। मोवाधिकरणके होते है।

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