Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 6
________________ भाषा छंद सहित। प्रमाणनयैरधिगमः ॥६॥ निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥ ७॥ सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ॥ ८॥ मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥ ९॥ तत्प्रमाणे ॥१०॥ आद्ये परोक्षम् ॥ ११॥ प्रत्यक्षमन्यत् ॥ १२॥ मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनान्तरम् ॥१३॥ तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥ १४॥ अवग्रहेहाज्वायधारणाः ॥१५॥ नय परिमाणके भेद सुजानत औरहु कारण जान सुजानो। निरदेश स्वामित साधन जान अधार रु इस्थिति भेद विधानो॥ संत संख्या छिति परसन काल रु अंतर भाव अल्प बहु मानो। मेति श्रुति अवधि ज्ञान मनपरजय केवलज्ञान सु पांच बखानो४ ऍही प्रमाण कहे श्रुतमें पहिले दो ज्ञान परोक्ष बताए । शेषे प्रतक्ष सु तीन रहे मैतिज्ञानके नाम सु पांच जताए ॥ सुमरन संज्ञा विचार लखौ भिनिबोध सु चितन भेद कहो है। ता मतिज्ञानको कारण जान सु इंद्री मन सब संग लहो है ५ छन्द मदराबरन । प्रथम देखना फिर विचारना बहरि परखना चितधरना । १३ स्मरण प्रत्यभिज्ञान तक अनुमान। १५अवग्रह ईहा अवाय धारणा ।

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