Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 13
________________ तत्त्वाथसूत्र ॥२६॥ अविग्रहा जीवस्य ॥२७॥ विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्थ्यः॥ २८॥ एकसमयाऽविग्रहा ॥२९॥ एक दौ त्रीन्वाऽनाहारकः ॥३०॥ सम्मूर्छनगर्भोपपादा जन्म ॥ ३१॥ सचित्तशीतसंवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः॥३२॥ जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः ॥३३॥ कर्मयोग” होत सो, विधिविन सरल स्वभाव ॥१०॥ संसारी जीवन कहो, विग्रह गति निरधार। चार समय पहिले गिनो, ऐक अविग्र निहार ॥११॥ सैंमय एक दो तीन लौं, रहै जीव विन हार । नाम अनाहारक कहो, भाषो सूत्र मझार ॥१२॥ सन्मूर्छन गर्भज कहे, उपपादक हू जान । ऐसे जन्म सु थान लख, तीनों भेद प्रमान ॥१३॥ चोरोसीलख योनि यों, सचित शीत अरु उस्न । संवृत सेतर मिश्र जे, गुनो परस्पर प्रस्न ॥१४॥ जैर अंडज पोतज कहे, गर्भ जन्मके थान । २७ विधि अर्थात् कर्मरहित मुक्त जीवों की गति कुटिलता रहित होती है । २९ एक समय में कुटिलता रहिल गात होती है।

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