Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 16
________________ भाषा छंद सहित। रत्नशर्करावालुकापङ्कघूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो | घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताऽधोऽधः ॥ १ ॥ तासु त्रिंशत्पञ्चविंशतिपञ्चदशदशत्रिपञ्चोनेकनरकश: तसहस्राणि पञ्च चैव यथाक्रमम् ॥२॥ नारका नित्या दोहा। तत्त्वारथ यह सूत्र है, मारग मोक्ष प्रकाश । यह प्रकार पूरण भयो, दूजो अध्या तासु ॥ २२ ॥ दोहा। रन शरकरा बालुका, पंक धूम तम जान । तथा महातम सप्तमी, प्रभा नर्क दुखखान ॥१॥ घन अंबू आकाश त्रय, बात बिले लपटान । सप्त नर्क पृथिवी तनी, नीचे नीचे जान ॥२॥ छन्द मदरावरन । जिन नोंमें बिले कहे हैं तिनकी संख्या सुनो सुजान । प्रथम नर्कमें तीसलाख बिल दूजे लाख पचीस बखान ॥ तीजे पंद्रह लाख गिनो विल दश लख चौथेमें परमान । श्वभ्र पांचवें तीन लाख हैं छटे पांच घट लाख सुमान॥३॥ नरक।

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