Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan
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तत्त्वार्थसूत्रनिरुपभोगमन्त्यम् ॥४४॥ गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम् ॥४५॥ भोपपादिकं वैक्रियिकम् ॥४६॥ लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ तैजसमपि ॥४८॥ शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रम
संयतस्यैव ॥ ॥४९॥ नारकसम्मूर्छिनो नपुंसकानि ॥५०॥ न देवाः॥५१॥ शेषास्त्रिवेदाः॥५२॥ औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ॥ ५३॥
इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥
भागके योग कहो नहिं अंतिम सूत्रमें या विध रूप दिखानो१९/ सन्मूर्छन गर्भज जीवनको औदारिक आदि शरीर बतायो । लब्धिके धारी मुनीजनऔ उपपादके वैक्रियिक दोय कहायो । तैजस भी तिनही मुनिकें आहारक शुद्ध सु निर्मल थायो। काहू कर घातोजाय नहीं गुणथान छटे मुनिराज गायो॥२०॥ नॉरकी और सन्मूर्छन जीव सुजानो नपुंसक वेद कहे । देवेनके यह वेद नहीं बाँकी सब जीव त्रिवेद कहे ॥ उपादिक चर्मशरीरीकी अरु उत्तम संहनन धारीकी । असंख्यातवर्षबालिनकी कहि नहिं बीचमें आयु छिदै इनकी२१

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