Book Title: Mokshshastra
Author(s): Chhotelal Pandit
Publisher: Jain Bharti Bhavan

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Page 12
________________ भाषा छंद सहित.। निरसनघाणचक्षुःश्रोत्राणि ॥ १९॥ स्पर्शरसगन्धवर्णशद्वास्तदर्थाः ॥२०॥ श्रुतमनिन्द्रियस्य ॥२१॥ वनस्पत्यन्तानामेकम् ॥२२॥ कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुप्यादीनामेकैकवृद्धानि ॥२३॥ संज्ञिनः समनस्काः ॥ २४ ॥ विग्रहगतौ कर्मयोगः ॥२५॥ अनुश्रेणि गतिः नोंक रु नेत्र सु कान कहे अरु जीभ स्पर्श सु इंद्री जानो॥ गंधै रु बर्ण सु शब्द कहे रस जान स्पर्शन पांच विषय हैं । मैनकि समर्थसों शास्त्र सु जानत थोवर पांच इकेंद्री निचय हैं।॥६॥ दोहा। कृमि पिपीलिका भ्रमर अरु मनुष आदि जे जीव । एक एक इंद्री अधिक धारत ज्ञान सदीव ॥ ७॥ संज्ञी जीव सु जानिये मन कर सहित सु जान । विग्रेह गतिके भेदको बर्णन करौं बखान ॥ ८॥ गतित गत्यांतर गमन कर्मयोग तैं जान । विIहविन सूधो गमन जीव अणू पहिचान ॥९॥ सूधो गमन स्वभाव है, टेढो गमन विभाव । • यह 'अनुश्रेणि गतिः' का अर्थ है । बिग्रहगतिमें जीवकी गति तथा पुद्गलपरमाणुकी गीत लोकाकाशमें श्रेणीवद्ध ही होती है। यही इसका अभिनाय है।

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