Book Title: Mewar ke Jain Tirth Part 02 Author(s): Mohanlal Bolya Publisher: Athwa Lines Jain Sangh View full book textPage 7
________________ संसार से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है - हम अहं मम से मुक्त हो जाये किन्तु यह कैसे संभव हो सके। इसका भी एक उपाय है कि हम हमारे ममत्वभाव को प्रशस्त क्षेत्र में केन्द्रित कर आज तक हम रटते रहे घर मेरा, परिवार मेरा, आज से रटण का प्रारंभ करे मंदिर मेरा, भगवान मेरे....... बस, यही रटण हमें शास्वत सुख का स्वामी बना सकता है। आओ, यह अवसर है हमारी आध्यात्मिक संपति के प्रति जागृत होने का, हमारे पूर्वजों सृजन किये हुए अलौकिक वैभव के प्रति उजागर होने का। यदि आप जैन है, सच्चे दिल से जिनशासन के प्रति श्रद्धावान है, आपका अंतर यदि भगवान महावीर का अनुयायी है तो आपको भी इन धर्मस्थानों में आपकी निजी संपति का दर्शन होगा। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ आपको अपूर्व आनंद प्रदान करेगा। आपका हृदय अहोभाव से परिपूर्ण होगा, मन प्रसन्नता से झूम उठेगा। भौतिक संपति के राग ने मम्मण सेठ को सातवीं नर्क में धकेल दिया और आध्यात्मिक संपति के अनुराग ने शालिभद्र जैसे कई भव्यात्माओं को दिव्य सुख की अनुभूति कराई, कहाँ अनुराग करना चाहिये, यह आप ही तय कर लीजिए । मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2 ध्यान में रहे, वास्तविक अनुराग उसे ही कहते हैं, जहाँ उपेक्षा का नाम भी न हो, जहाँ अनुराग पात्र को देखे बिना एवं उसकी देखभाल किये बिना चैन ना मिले। हमारी इस आध्यात्मिक संपति का अनुराग एवं अनुपालन ही हमारा श्रेष्ठ सौभाग्य है । शास्त्रकार परमर्षियों ने एक रेड सिग्नल बनाया है जो अपनी आध्यात्मिक संपति की उपेक्षा करता है, वह अपनी भौतिक संपति भी खो बैठता है। तारक तत्वों की आराधना आबादी की हेतु है तो तारक तत्वों की उपेक्षा बर्बादी का अमोद्य कारण है। उदयपुर के श्रद्धारत्न लेखक श्री मोहनलालजी बोल्या ने गाँव गाँव घूम कर हमारी आध्यात्मिक संपति की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी एवं छवियों का यह सुंदर संग्रह किया है। आओ, पहले इसका परिचय करें, फिर प्रेम करें, फिर पालन करें..... और इसके द्वारा प्रसन्नता के स्वामी बने.....परंपरा से परमपद के आसामी बने । जिनाज्ञा विरुद्ध लेखन किया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म् Jain Education International आचार्य विजय कल्याण बोधिसूरि. V For Personal &ed se Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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