Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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मन्त्रराजरहस्यम् । अष्टांशाः शिव-भवगाः शेषांशा मोक्षमाज एवोक्ताः । मोक्षतस्वीजमर्हन् शेषाः शासा- प्रशासादि । मेरुपदस्मरणादिह जिनप्रभा स्तुतिपदानि जैनद्धिः। इरिमुख्या देव्योऽमूर्जिना देवातिशयरूपाः ।।
[ मन्त्रोक्तय. -] मेहती वृहती उक्ता न्यासीति चतुर्विधेह मन्त्रोक्तिः। महती स्वपाठसिद्धा वृहती चाल्पजपवहुसिद्धिः ।।
[ मन्त्रोक्तिलक्षणम् - ] उक्ताऽध गौतमी सा जाप-तपोऽर्चाज्ञ पूर्व यावत् । न्यासीत्येकत्र पदे बहुदेवीनामविन्यासः ।।
[ गुरुलक्षणम् - अहेन्मेरुस्मरणात् तद्रूपो गुरुरतश्च 'तच्छिप्यः । चतुरनुयोगी गणभृत् तीर्थानुच्छेदहेतुः स्यात् ।।
[शिष्यलक्षणम् -] कुलशुद्धो व्रतनिष्ठो बहुशः पशिता गुणैर्युक्तः । जिन-गुरुभकः शिप्यो योग्यस्तन्मन्त्रराजस्य ।।
[ मुद्रापञ्चकम् -] पूर्व मुद्रापञ्चकमाहान-स्थापने ससंनिधिक। सम्यगनिरोधमवगुण्ठनमिति तल्लक्षणं वच्मि ।।
[भाहानादिमुद्रापञ्चकलक्षणम् -] आहान प्रस्ताञ्जलि संम्याप्यमवाड्मुखेऽअली ध्येयम् । उद्गुिष्ठे मुष्टिद्वन्दे ध्येयाग्रतस्तृतीयं तु ॥ अशष्टमध्यमुष्टी निरोधनं ध्येयदि चतरपु च। ध्यानुस्तनन्यगुलिभ्रमतः स्यात् तदवगुण्ठनम् ।। I AAT

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