Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 31
________________ मन्त्रराजरहरूपम् । जापोऽष्टाधिसहस्रैः सितपत्रैर्निरशनत्रयं यदिवा | आचाम्लत्रयमित्थं रुष्टमरिं शमयति नृपं वा ॥ " भणवान्तं वश्यवपुः ऐ" श्रीँ सिरिमेरुतो मरुद् - व्योम " । श्रीखण्डेन लिखित्वा सितपत्रैः सहस्रपरिजापः ॥ परिजप्तपत्र - फल - कुसुमदानतो भर्तृवश्याय । मध्याङ्गुल्याः पर्वणि तृतीयके त्र्यक्षरो जापः ॥ युग्मम् ॥ कार्तिक्यामाद्यां वा राकायां निरशनं विधायादौ । द्वासप्ततिराकान्ते द्वयधिसप्ततिनिरशनैः क्रमतः || सौधर्मेन्द्रासनदक्षिणपादाघः' स्वातिधिण्य - हरात्रौ । वज्रासनेन जापोऽधिमेरु यद्विवेत्यमावास्याः ॥ युग्मम् ॥ थममस्थाने वा स्तुतिपदसंख्यं च निरशनविधानम् । मुद्रा आनुपूर्वियुगादृष्टाधिसहस्रपरिजपात् सिद्धिः ॥ पञ्चमस्थानांशैः कोटयंशः फलद एव विपमांश: । मध्यफलस्तु समांशी गुरुक्रमादंशगणनमत्वेप्यम् ॥ लग्नस्यार्चाकाले विद्यालग्नेऽथ मेरुमन्त्रांशाः । पोडश देया यस्मादेते तीर्थान्तमनुयान्ति ।। गौतमकेवलिनोक्ता एकादशमेरवः श्रुतधरैस्तु । दश वज्रेण नवैते नागेन्द्राधैर्नवादिपश्चान्ताः ॥ अष्ट- नवव्युच्छित्तिर्नागेन्द्राः सप्त वैधिकाः पडमी । चान्द्राः पञ्चमुनि - नगा मया परम् ॥ द्वि- त्र्यधिक- देश - गजै - जिनैं - रदैन संख्यलब्धिपदी | कोन पूर्णा चत्वारिंशद् दर्शसमेताः ॥ ॥ इति श्रीसिंहतिलकसूरिदर्शितमन्त्रराजरहस्ये देवाद्विपञ्चकरहस्यम् ॥ * 1. शत 3 । 2 पदाघ A। 3 वास्याम् j २०० [ २१ २०१ २०२ २०३ २०४ २०५ २०६ २०७ २०८ २०९ २१०

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