Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
मन्त्रराजरहस्यम् ।
[२५ दिग्मात्रमियं व्याख्या सम्यग् जानन्ति पूर्वविद एताम् । यस्मादस्य स्मरणात् त्रिभवे शुद्धिस्त्रिशुद्धस्य ॥
२४६ पष्ठे वलये चतुरधिविंशतिजिनमूर्तयः स्वलक्ष्मयुताः। सप्तमके तावन्त्यो विद्याः स्युर्वर्द्धमानाद्याः ॥
२४७ अन्तश्च वीरमूर्तिः 'मुमणे-सोमणस' नाम चमरधरौ । पादाधो ग्रहनवकं दक्षिणतो गौतमो भगवान् ।
२४८ मूर्तिक्षिणकोणे ऊर्य देवी सरस्वती वामे। . लक्ष्मीरधश्च वामे गणिपिटकाख्यः स यक्षेन्द्रः ॥
२४९ दक्षिणतो मानुपनगशिखरे त्रिभुवनविभुलभृदेवी । आत्मगुरुरात्ममूर्तिः सौधर्मेन्द्रादयो यथायुक्ति ।
२५० यक्षस्य च पणपनीनाम्नो निकटेऽथ यक्षिणीनग्ना। मुस्कलकेशाच्छादितपृष्ठिः सत्फलितक्षतले ॥
२५१ दक्षिणकटीस्थ-दक्षिणपाणिमिकरमोदकसपात्रा । 'नैं पाशाङ्कुश -माया सयक्षिणी नमः' इति मन्त्रः ।। २५२ करजापे माग्लसको जातीकुसुमानि सहस्राः। दश होमश्च दशांशः सिद्धा सत्पुप्पफलदा स्यात् ।। त्रिभिर्विशेषकम् ।। २५३
इति श्रीसिंहतिलकसूरिविरचिते • मन्त्रराजरहस्ये सप्तदेवादिरहस्यमिदं प्रदर्शितम् ।।
२५४
स्तुतिपदी(३२-२४ )रहस्यम् ॥ द्वात्रिंशतमुत चतुरधिशितिमादौ विधाय तल्लब्धिपदीम् । मागुक्तमेव शेपं गुरुवशतः किश्चिदन्यदपि ॥ "निण-ओहि-परमोहि-अणतोहि-अणंताणंदोहिनिणे । केबलि-भवत्यकेबलि-अमवयं य केवलीयं च ।। 1 पीलमा ।
२५५

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156