Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 62
________________ ५१५ श्रीसिंहतिलकसरिविरचितं पञ्चमस्थानाक्षरतः शतमेकं युगेकसप्तत्या। श्लोकास्तु पञ्च वर्णा एकादश सरिमन्त्रेऽस्मिन् ।। मेरुक्रमपञ्चाईसिद्धाया जे-भ-मे-है-क्षेपिण्डयुताः। उत्सर्गे पञ्चशतीकुसुमैः पार्चिना च तद् स्वप्नम् ।। ॥ इति मन्त्रराजरहस्ये संक्षिप्तविशेषः ॥ ५१८ ५१९ ५२० ५२१ उपविद्या मेरुज्झितगणधरमन्त्रो नमोऽम्बुधिस्तुतिकः । सर्वार्थसिद्धवीज यन्लान्ते वलयतः कचिददृष्टः ।। पणवो नमो जिणाणं ओहिजिणे परमोहिजिणे । तहणंतोहिजिणाणं मुकुट्टयुद्धीण वीर्यबुद्धीणं ॥ पैयअणुसारीण नमो संमिनसोय तह संयुद्धे । पत्तेयबुद्ध नमिमो उज्जुमई "विउलमई नमिमो । उदस-देसपुचीणं इकारसअगि अ [ ? पुन्बाई ] । महानिमित्तकुसलाणं विउव्वणइढिपत्ताणं ।।। विजाहरसमणाणं चारणसमणाण पेण्हसमणाणं । आगासगामि आसीविसाण "दिद्विविसाणं च ॥ उगतव महतवाणं घोरेगुणजुत्तवंभयारीणं । आमोसहि-"विप्पोसहि-“खेलोसहि-जल्लओसहिओ ॥ संयोसहिपचाणं मैणवलि-यणवलि-कायवलि । सीर धैय अमय - आसव - अक्खीण महाणसाइलद्धीणं ।। तह बद्धमाणघुद्धिसिरीण सिद्धायणाण सव्वेसि। . घग्गुए तह फग्गु फग्गुए य तह भुमिणे ॥ सोमणसे महमहुरे किरिया "पिरियाइ चेव 'सिरियाए। आयरियाए"किरिकिरिकाली "पिरिपिरिजुया काली ॥ सिरिसिरिकोली"हिरिहिरिकाली तहा“सिरिजुया काली। वग्गु निवग्गु दुग्गु निफग्गु दुसुमणे य सोमणसे ॥ ५२३ ५२४ ५२५ ५२६

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