Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 127
________________ [११५ मन्त्रराजरहस्यम् । ९. परिशिष्टम् । श्रीपूर्णचन्द्रसूरिविरचितं श्रीसूरिविद्यागभितं लब्धिस्तोत्रम् । उत्ततरुणयवानं झाणं धरिऊण मुहगमुद्दाए । जो झाइ सरिविज्नं तस्स बसे तिहुअणं सयलं ।। १ ॥ सजलजलवाहकालं झाणं धरिऊण चकमुद्दाए । जो झाइ सरिविजं तस्स खयं जाड रिउवग्गो ॥२॥ निण-हिम-परमोहिणतोडिौं-तणंतओहिनिणा। कलि-भरत्यकवलि-अभवत्यिअकेवलीणं च ॥ ३ ॥ उज्जुमई विउँलमई व बियलद्धि-सबलद्वीणं । पंण्डासमणा य राहा जंघाचारणमुगीणं च ॥ ४ ॥ विन्जासिद्धाणं तह आगासगामीण तह य निचं पि । यणविस-ततैलेसाण पणमिमो सीअलेसाणं ॥ ५ ॥ चंउदस-दसपुचीणं इकारसभंग[गुत्त ?]धारीणं । तह य दुयालसभंगीण उगतवचरणचारीणं ॥६॥ सव्वेसि पि निणाणं एएसि पपाण छटिबहुवयणं । आइम्मि 'नमो' सहो ही' सहि(हि)ी म परमपए ॥ ७॥ मुफमाणेणेसी फम्माययकारणो परममंतो। सायनो अतिसाले निर्ग परमिहिमुहाए ॥ ८॥ सीरासर-माभास-भमिपामालदिभान पनयं। अरवीगमहापसलदियान संभिप्रमोपा ॥ ९ ॥ मत्तो पपाशुमारिभरदीय नाप यापपुलीनं । सुनो अहपुदीग सनपानमो' भामी ॥१०॥ परमिनमोगर शिपापा नारामी मारा। मोगा रिता नापना गामानं ॥११॥

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