Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 128
________________ श्रीसिंहतिलकसूरिविरचित किंमअमुअमुहवनं गाणं धरिऊण जोणिमुद्दाए । विजं सो सोहग्गं पावइ जबईण जोगं च ॥ १२ ॥ उत्तत्तकणयवानं ॥ १३ ॥ (१) सजलजलवाहरने ॥ १४ ॥ (२) इस एए उवएसा सव्वे नाऊण झाइ जो खरी। सो पुनचंदसूरीण संमयं लहइ सिवमुक्खं ॥१५॥ इनि विद्यागर्भितं लब्धिस्तोत्रं समाप्तम् ॥ १०. परिशिष्टम् । सिरिमुणिसुन्दरसूरिविरइयं संतिकरथवणं । संतिकरं संतिजिणं जगसरणं जयसिरीई दायारं । समरामि भत्त-पालग-निबाणी गरुडकयसेवं ।। १ ।। 'ॐ सनमो विप्पोसहिपत्ताणं संतिसामिपायाणं । ों स्वाहा'मंतेणं सवासिवदुरिअहरणाणं ॥२॥ 'जै संति-नमुकारो खेलोसहिमादलद्धिपत्ताणं । सौं ही नमो सम्बोसहिपत्ताणं च देइ सिरि ॥३॥ वाणी-तिहुअणसामिणि सिरिदेवी-जरसराय-गणिपिडगा। सह-दिमिणालमुठिा सया विरंतु जिणभत्ते ॥ ४ ॥ रक्खंतु मम रोहिणी-पन्नत्ती बजसिसला य सया । वजंकुसि चक्केसरि-नरदत्ता कालि-महकाली ॥५॥ गोरी तह गंधारी महजाला माणवी अ बदहा । अच्छुत्ता माणसिआ महमाणसिया उ देवीओ ॥ ६॥ जक्सा गोमुह-महजक्रा-तिमुह-जवखेस-तुंवरू कुमुमो । मायंग-विनय-अजिआ घंभो मणुओ मुरकुमारो ।। ७ ।।

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