Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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११४]
श्रीसिंहतिलकसूरिविरचितं जिण-ओहि आरम्भा जाव य वेउन्बिलद्धिपययं च । चउदस-दसपुच्चीणं तह उण एगारसंगीणं ॥३॥ एए चउवीसपए नायव्वे सुरिणो पररमंते । मायावण्णविरहिए नृणमुवरिजए निच्च ।। ४ ।।
[तइया चायणा] रागाइरिउजईण नमो जिणाणं नमो महं होउ । एवं ओहिंजिणाणं परमोहीणं तहा तेर्सि ॥१॥ एवमणंतोहीणं णंताणंतोडिजुयनिणाण नमो । सामन्नकेवलीणं भवाभवत्याण तेर्सि तहा ॥२॥ उग्गतववरणचारीणमेवमित्तो नमो होइ । चउदस-दसपुवीणं नमो तहेगारसंगीणं ।। ३ ।। एएसि सन्वेसि एवं काउं अहं नमोकारं। जमियं विजं पउंजे सा मे विज्जा पसिज्झिज्जा ॥४॥ निचं नमो भगवओ बाहुबलिस्सेह पण्डसमणस्स । 3 वग्गुं वग्गु निवग्गं निवग्गुमग्गंगयम्स तहा ॥५॥ समणे वि य सोमणसे महुमहुरे जिणवरे नमसामि । इरिकाली पिरिकाली सिरिकाली तह य महकाली ॥६॥ फिरियाए हिरियाए अ संगए तिविदकालय विरए । सुहसाहए य तह मुत्तिसाहए साहुणो वंदे ॥ ७॥ ॐ किरितिरिकालि पिरितिरिकालिं च तदा सिरिसिरिमानि । हिरिहिरिकालिप्यं पि य सिरि य सिरि य आयरियकालिं ॥ ८॥ किरिमेरुं पिरिमेरु सिरिमेरुं तह य होड हिरिमेसें। आयरिमेरु पयमवि साहंते सुरिणो वंदे ॥ ९ ॥ इयमंतपयसमेया धुणिया सिरिमागदेवमूरिहि । जिण-सरि-साहुणो सड दिंतु धुणंताण सिद्धिमुहं ।। १० ।।

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