Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 125
________________ मन्त्रराजरहस्यम् । ८. परिशिष्टम् । सिरिमाणदेवरिविरइया सिरिसूरिमंतथुई ॥ - - [पढमा वायणा] सिरिस रिमंतपवरे जे सिद्धा मुयपवुड्ढिसंजणगा। तव्ययणसंगहो मे वणिजइ तप्पए नमिउं ॥ १ ॥ जिण-ओहिअ-परमोहिअ-गंतोहिअ-णतणतओहिजिणा । केवलि-भवत्थकेवलि-अभवत्यियकेवलीणं च ॥२॥ उज्जुमई-"विउलमई-वेउँग्वियलद्धि-सव्वलद्धीणं । पण्डासमणाण तहा जंघाचारणमुणीणं च ॥ ३ ॥ विजासिद्धाण तहा आगासमामीण तह य निचं पि। आमोसहि-विपोसहि-रोलोसहि-जल्लओसहीणं च ॥ ४ ॥ संयोसहि-आसीविम-अटुंगनिमिनधारयाणं च । वर्यणविस-तत्तलेसाण पणमिमो सीयलेसाणं ॥५॥ चउदस-दसैंपुषीणं ऐगारसअंगसुत्तधारीणं । संभिन्नसोयाण तहा दुवालसंगीण सबसिद्धाणं ॥ ६ ॥ उग्गतवचरणचारीणमेव वत्तीसथुइपयाणं च । आइम्मि 'नमो ऊँ ही पढमपयाओ छहिबहुवयणं ॥७॥ [बीया थायणा] खीरासब-महुभासव-अमियासालद्धियाण पत्तेयं । अंग्सीणमहाणससंठियाण 'संभिन्नसोयाणं ॥१॥ तत्तो पंयाणुसारीलद्धीणं तह य यीयबुद्धीणं । तत्तो य कुंडबुद्धीणं सवपया 'ॐ नमो' पुच्वं ॥२॥

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