Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 77
________________ मन्त्रराजरहस्यम् ! [६७ 'यैः शान्तराग०' थी आठ श्लोकोमा प्रत्येक श्लोक क्रमश. १ सरस्वती, २ रोगापहारिणी, ३ विपापहारिणी, ४ बंधमोक्षणी, ५ आराधकश्रीसंपादिनी, ६ परविद्याच्छेदिनी, ७ दोपनि शनी अने ८ अशिवोपशमनी विद्याना छे-आ विद्याष्टक कहेवाय छे अने ते पद्योनो प्रभातकाळे कायोत्सर्गध्यान अने जापथी जे मनुष्य पाठ करे छे ते पोतानी अने बीजानी शांति करनारो थाय छे । (३५-३८) बधां पदोनी आगळ 'नत्वा प्रयुञ्जे या विद्यां सा में विद्या प्रसिद्धचतु स्वाहा' एम जोडबु। बधां पदो माटे १०८ वार जाप करवो अने कायोत्सर्ग तेम ज उपवास करवो। सामान्य रीते एवो विधि छे के जापमा आठ हजार कमळो लेवां । सात दिवसथी लइने ३२ दिवस सुधी जाप करयो भने ते पछी पाणीनो स्पर्श करता ते मंत्रजापनां फळ मळे छ । श्रीऋषभदेव, श्रीचंद्रप्रभस्वामी के श्रीवीर भगवतमा चैत्यमां, तीर्थंकरोना जन्मकल्याणकना दिवसे हृदयमां श्रीपुंडरीकस्वामी, श्रीवामी (सरस्वती) अने श्रीगौतमस्वामी सुवर्ण • कमलमा वेठेला होय ते रीते स्थापन करवा अने श्रीजिनेश्वर भगवंत आठ प्रातिहार्य अने चोत्रीश अतिशयथी युक्त छे एवं ध्यान करीने काउसम्गमां नीचेनां लब्धिपदोनो ते ते कार्य माटे १०८ वार जाप फरवो - १. , णमो जिणाणं । नत्वा० -~~ आ पदनो काउसग्गमा १०८ वार जाप करतां शूल रोगनो नाश थाय छे। (५२) २. ॐ णमो ओहिजिणाणं । नत्वा० - आ पदनो काउसग्गमा १०८ बार जाप करनार हाथनो स्पर्श करीने रोगी माणसने पाणी पिवडावे तो ते बघा प्रकारना तावनुं निवारण करे छे । (५३) ३. ॐ णमो परमोहिजिणाणं । नत्वा० -- आ पदनो १०८ वार जाप करनार स्पर्श करवा मात्रथी मस्तकना रोगने हरी ले छे । (५४) ४. ज णमो अणंतोहिजिणाणं । नत्वा० -- आ पदनो १०८ वार जाप करनार कानना रोगने दूर करे छे । (५४) ५. ॐ णमो अणंताणतोहिजिणाणं । नत्वा० --- आ पदनना जापथी आंखना रोगो हठी जाय छ । (५५) ६. में णमो केवलीणं, णमो भवत्यकेवलीणं, में णमो अमवत्य. केवलीणं । नत्वा० ~~~- मा केवलीरिकना जापथी ज्ञान प्राप्त थाय भने बंधनमांथी मुक्ति मळे छ । (५५)

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