Book Title: Mantraraj Rahasyam
Author(s): Sinhtilaksuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 118
________________ १०६ ] श्रीसिंह तिलकसूरिविरचितं 'लै नमः आचार्येभ्यः ' दक्षिणमणी, ' नमः उपाध्यायेभ्यः' पश्चिममणी, 4 5 ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः ' उत्तरमणौ । वासकर्पूरक्षेपः बार ३ सुगन्धपुष्पैः पूजा ॥ सर्वदेवता सरपूजनम् ॥ ८ ॥ ९. आह्वानम् - अथ पञ्चोपचाराः- " आँ क्रो" ही श्री भगवन् ! गौतम ! सलब्धिसंपन्न! अन समवसरण - स्थकनकमयसहस्रपत्रासने एहि एहि संत्रोपट् || " अञ्जलिमुद्रया गौतमावानं, सा च सावित्रीमूलस्थापितोऽङ्गुष्ठा सपुष्पाञ्जलिमुद्रा मध्यमणी आर्हन्त्यं ( अर्हत्त्वं ) रूपं हृदि चिन्त्यम् ॥ ९ ॥ (१) १०. स्थापनम् - " “आँक्रो हो" श्री " भगवन् ! गौतम ! सर्वलब्धिसंपन्न ! अन कनकमयHeart fag fag ठः ठः । " स्थापना, सेयं मुद्रा विपरीता ॥ १० ॥ ( २ ) ११ संनिधानम् - "ओं को ही श्री भगवन् ! गौतम ! सर्वलब्धिसंपन्न | मम संनिहितो भव भव वपट् ॥ 39 संनिधाने ऊर्ध्वाङ्गुष्ठमुष्टयोर्मिलनम् || ११ || (३) १२. संनिरोध: "ओं को ही* थी भगवन ! गौतम ! सर्वयन्धिसंपन्न! पूजान्वं यावदत्र स्थातव्यम् ॥ " इति संनिरोधोऽभ्यन्तराङ्गुष्ठे मुष्टी मिलिते ।। १२ ।। (४) १३. अवगुण्ठनम् - - "आं क्रो हो" श्री भगवन् ! गौतम ! सर्वसंपन्न ! परंपारयां भव भव नमः || " इत्यत्रगुण्ठने मुष्टिं वच्चा मसारिवतर्जनी कामध्यमोपरि निवेशितानुष्ठानगुण्ठनमुद्रा ॥ १३ ॥ (५)

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