Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ 'मैं कुछ होना चाहता हूं'-इस स्वर से यथार्थ की साधना प्रारम्भ होती है और प्रतिबिम्बों से पार जाकर कृतकृत्य हो जाती है। सचाई को पाने के लिए साक्षात्कार जरूरी है और अपने अनुभवों को दूसरों तक पहुंचाने के लिए बुद्धि और तर्क जरूरी है। हमारी चेतना के तीन कोण हैंरोने वाली चेतना-यह सुख में से दुःख निकालने वाली चेतना है। हंसने वाली चेतना-यह दु:ख में से सुख निकालने वाली चेतना है। पूर्णता की चेतना-यह अपूर्णता को भरने वाली पुरुषार्थ की चेतना आत्मानुशासन के पांच घटक हैंश्वास पर अनुशासन। शरीर पर अनुशासन। इन्द्रियों पर अनुशासन। प्राण पर अनुशासन। मन पर अनुशासन। आचार्यश्री ने 'मनोनुशासन' लिखा है। मन की अनुशासना के छह अंग हैं-आहार का अनुशासन, शरीर का अनुशासन, इन्द्रिय का अनुशासन, श्वास का अनुशासन, इच्छा का अनुशासन, मन का अनुशासन। मैंने इस ग्रन्थ पर व्याख्या लिखी। शिविरकाल में इन विषयों पर विस्तार से प्रवचन करने का अवसर मिला। कुछ विषय और जुड़े और मैं कुछ होना चाहता हूं' रूपायित हो गया। इसको पढ़कर यदि पाठक होने' की ओर प्रस्थान करेंगे तो निश्चित ही वे होकर' रहेंगे। आचार्यवर ने मुझे होने' की ओर प्रस्थान कराया, प्रोत्साहन दिया और उसकी परिणति का भी साक्षात् किया। यह सब उन्हीं की अनुकम्पा है। इसका संपादन मुनि दुलहराजजी ने किया है। आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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