________________
कि आज विश्व के कोने-कोने में हजारो भाषाओं और सैकड़ों लिपियां देखने में आ रही हैं।
विचारों के विकास के साथ मानव मे एक दूसरे के प्रति प्रेम पूर्ण व्यवहार करने की भावना उत्पन्न हुई। कालान्तर मे ससार के सुखो एव दुखों को देखकर ईश्वर की परिकल्पना को जन्म दिया गया। अवतारवाद की आधी विश्व में फैली और विविध धर्मो का जन्म हुआ। अनेको विचारक आये और उन्होने अपने-अपने विचार व्यक्त कर मानव समुदायो को अपना अनुयायी वनाया। इस प्रकार भले ही प्रथमानुयोग मे दृष्टान्तों द्वारा मानवत्व के विकास की कहानी का आदि और अन्त प्रतिपादित किया हो परन्तु द्रव्यानुयोग ने तो आत्मा के विकास की ही कथा अनादि और अनन्त की भाषा मे सतत कही है। कोई उसे सुने या नही। वह कहानी तो आज भी चल रही है, कल भी चलती रहेगी एव विगत कल भी चलती रही थी। उसकी अजस्र धारा तीनो काल प्रवहमान है । तो भी आध्यात्म की यह कथा मुग्ध सुषुप्त और मूच्छित जीवों को शीघ्र सुनाई नहीं देती, वल्कि आध्यात्मिक क्रान्ति के नगाडे जब उनके कानो पर जोरजोर से वजते हैं तभी उनकी मोह-निन्द्रा भग होती है। और वे देखते हैं उस युग-पुरुष को जिसने चैतन्य आत्म जागति का विगुल फूक कर उन्हे जगाया है । बस तभी से उनकी आत्मा के विकास की कहानी का प्रारम्भ हो जाता है।
भगवान महावीर स्वामी भी एक ऐसे ही आध्यात्मिक क्रान्ति के अग्रदूत युग-पुरुष थे जिन्होने ईश्वरवाद, व्यक्तिवाद, स्वार्थवाद, कर्मवाद, पाखंडवाद, अवतारवाद की जडी भूत रूढ मान्यताओं के विरुद्ध क्रमश शुद्धात्मवाद, परमात्मवाद, आत्मवाद, परमार्थवाद और मोक्षवाद, अनेकातवाद का प्रतिपादन करके प्राणिमात्र के क्षद्रतम अहं को भी सिद्ध जैसे विराट्तम