________________
: १०
अह के पद पर पहुंचने की प्रेरणा दी-ज्ञान दिया। इस भांति सनातनता का आदि मध्य और अन्त सभी कुछ आत्मतत्त्व पर केन्द्रित हो गया। फलस्वरूप प्रत्येक आत्मा ने जव अपने मे झाक कर देखा तो निश्चयत उसे परमात्मा के पुनीत दर्शन हुए।
हम जानते है कि जिस वस्तु का विकास होता है उसका विनाश भी होता है । ज्ञान भी वर्धमान एव हीयमान, अव स्थित एवं अनवस्थित होता है। चाहे कारण कुछ भी हो भारतीय सस्कृति का भी यही हाल है। वर्तमान मे पाश्चात्य सभ्यता एव सस्कृति के प्रभाव के कारण भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति का क्रमिक ह्रास होता जा रहा है। मानव की सघटनात्मक प्रवृत्तिया समाप्त हो रही हैं और विघटनकारी प्रवृत्तियां पनप रही हैं । सारा राष्ट्र एक असतुलन की स्थिति से गुजर रहा है। सर्वत्र अशान्ति एव अराजकता की भयकर स्थिति नजर आ रही है। जो मनुष्य थोडा भी समझदार है वह चाहता है कि अव देश मे कोई एक ऐसी व्यवस्था आवे जो शान्ति एव स्थिरता उत्पन्न करे । मैं समझता हू कि भगवान महावीर के उपदेश वर्तमान स्थिति को काबू में करने के लिए अत्यधिक समर्थ है।
"महावीर श्री चित्र-शतक" ग्रन्थ मे भी भगवान महावीर स्वामी के जन्म जन्मान्तरो के चित्रो के द्वारा द्वारा प्रदर्शित करने का सुप्रयास किया गया है कि आत्मा का क्रमिक विकास किन ऊबड़ खाबड या उच्चसम परिस्थितियों से गुजर कर हो पाता है। महावीर जिस प्रकार अनेको भवो के आधार पर अपना विकास कर जगत्पूज्यत्व प्राप्त कर सके उसी प्रकार प्रत्येक मानव की अपनी अन्तरग आत्मा ईश्वरत्व' सम्पन्न है । अगर विकास हो तो ईश्वर बना जा सकता है।
'महावीर श्री चित्र-शतक' के चित्र आत्मा के ऋमिक विकास के साक्षात् प्रमाण है । प्रथमानुयोग उन्हे मानव के क्रमिक